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________________ मरणकण्डिका - ३७३ उच्चत्वमिव नीचत्वं, चेतसा यो निरीक्षते। उच्चत्व इव नीचत्त्वे, किमसौ न सुखायते ।।१२९१ ॥ अर्थ - जो मनुष्य अपने मन से नीच गोत्र को उच्च गोत्र के सदृश ही देखता है, वह उच्च कुल के समान नीच कुल में भी क्या सुखी नहीं होता ? होता ही है ।।१२९१ ॥ प्रश्न - इस श्लोक का हार्द क्या है ? उत्तर - यथार्थतः सुख एवं दुःख संकल्प के आधीन हैं। अर्थात् नीचत्व-उच्चत्व को अच्छा-बुरा मान कर सुख या दुःख की अनुभूति का अनुभव व्यक्ति के संकल्पाधीन है। कोई चाण्डाल कुल में जन्म लेकर भी अपने को श्रेष्ठ मानता हुआ सुखी हो सकता है और कोई उच्चकुलीन भी दुखानुभव कर सकते हैं। जो नीचकुलीन ऐसा विचार कर लेता है कि "जो जिसे प्राप्त है वही उसके लिए उत्तम है। जो प्राप्त नहीं है वह श्रेष्ठ भी है तो उससे क्या ?" ऐसा विचार आते ही उच्चकुल के समान नीचकुल में भी सुखानुभव हो जाता है। उच्च कुल में जन्म लेकर यदि जिनदीक्षा ग्रहण की जाती है तो उच्चकुल-प्राप्ति की सार्थकता है। अन्यथा उच्चकुल के झूठे अभिमान मात्र से क्या सुख ! यो नीचत्वमिवोच्चत्वं, विकल्पयति मानसे । तस्यांच्यत्वं न किं दुःखं, नीचत्वमिव जायते ॥१२९२॥ अर्थ - जो अपने मन से नीचत्व के समान ही उच्चत्व को मानता है, उसको उच्चकुल मिलने पर भी क्या नीचत्व सदृश दुख नहीं होता ? अपितु होता ही है॥१२९२ ।। ततो नोच्चत्व-नीचत्वे, कारणं प्रीति-दुःखयोः। परमुच्चत्व-नीचत्व-संकल्प: कारणं तयोः ।।१२९३ ॥ अर्थ - अत: यह सिद्ध हुआ कि उच्चत्व और नीचत्व सुख एवं दुःख नहीं देते अपितु उच्चत्त्व तथा नीचत्व का संकल्प ही सुख और दुःख का कारण है ।।१२९३ ।। नीचगोत्रं नरं मानो, विधत्ते बहु-जन्मसु । प्राप्ता लक्ष्मीमतिर्नीचा योनिर्मानेन भूरिशः॥१२९४ ।। अर्थ - यह मान कषाय पुरुष को अनेक जन्मों तक नीचगोत्री बनाती है। देखो ! लक्ष्मीमती “मैं सुन्दर हूँ" इस मान द्वारा अनेक बार नीच गोत्र में उत्पन्न हुई थी ॥१२९४॥ * लक्ष्मीमती की कथा * लक्ष्मी नामके ग्राममें सोमशर्मा ब्राह्मणके लक्ष्मीमती नामक अत्यंत रूपवती पत्नी थी। उसको अपने रूपका बड़ा भारी गर्व था । वह सदा ही अपने रूपको सँवारने में लगी रहती। एक दिन पक्षोपवासी समाधिगुप्त नामके मुनिराज आहारके लिये आये। आँगनमें आते हुए देखकर लक्ष्मीमतीने उनकी बहुत निंदा की, गालियाँ
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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