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________________ T ! ↓ हैं ? मरणकण्डिका - ३६७ प्रश्न - इन तीन शल्यों के सामान्य लक्षण क्या हैं और ये शल्य व्रतों के घात में निमित्त कैसे बनते उत्तर - तत्त्वों की अश्रद्धारूप आत्म-परिणाम मिध्यात्व शल्य है । छल-कपटरूप परिणाम माया शल्य है और धार्मिक अनुष्ठान से भोगप्राप्तिरूप आत्मपरिणाम निदान शल्य है। मिथ्यात्व, सम्यक्त्व का घातक है और सम्यक्त्व बिना चारित्र सम्यक्चारित्र नहीं होता तथा सम्यक्चारित्र बिना व्रत नहीं होता, अतः स्वराः सिद्ध हो गया कि मिथ्याचे शल्य व्रत का घातक है। अपने व्रतों में लगे हुए दोषों को छिपाना माया है और यदि आलोचना करके दोषों की शुद्धि नहीं की जायगी तो व्रतों का ही घात होगा। साधु का रत्नत्रय धर्म के अतिरिक्त भोगादि में उपयोग जाना निदान है। ऐसे परिणामों से सम्यक्त्व मलिन होता है, जो व्रत के घात का प्रकर्षतम निमित्त है, इसीलिए शल्यों को व्रत - घातक कहा गया है। निदान शल्य और उसके भेद निषेद्ध सिद्धि - लाभस्य, विभवस्येक कल्मषम् । निदानं त्रिविधं शस्तमशस्तं भोग- कारणम् ।। १२७३ ।। अर्थ - प्रशस्त निदान, अप्रशस्त निदान और भोगकृत निदान के भेद से निदान शल्य तीन प्रकार का है। मुक्तिलाभ का कारण रत्नत्रय है और एकमात्र पापस्वरूप होने के कारण यह निदान शल्य रत्नत्रय का निषेधक अर्थात् घातक है || १२७३ ।। प्रशस्त निदान नृत्त्वं सत्त्वं बलं वीर्यं, संहतिं पावनं कुलम् । निदानं शस्तमुच्यते ।। १२७४ ।। वृत्ताय याचमानस्य, अर्थ - पूर्ण चारित्र पालने के लिए मुझे पुरुषत्व, सत्त्व, बल, वीर्य, संहति एवं पवित्र कुल प्राप्त हो, इस प्रकार याचना करना प्रशस्त निदान है ।। १२७५ ।। प्रश्न इन नृत्व, सत्त्वादि के क्या लक्षण हैं ? उत्तर - नृत्व - संयम पालने योग्य पुरुषत्व, सत्त्व- आत्मिक उत्साह, बल- शरीरगत दृढ़ता, वीर्यवीर्यान्तराय कर्म प्रकृति के क्षयोपशम विशेष से उत्पन्न वीर्यरूप परिणाम, संहति उत्तमोत्तम चारित्रधारण भूत अस्थियों के बन्धन विशेष रूप वज्रवृषभनाराच संहनन एवं अनिन्दित पवित्र कुल, ये उत्कृष्ट संयम के साधन मुझे प्राप्त हों, चित्त में इस प्रकार के विचार होना प्रशस्त निदान है । अप्रशस्त निदान अर्हद्रणधराचार्य - सुभगादेयतादिकम् । प्रोक्तं प्रार्थयतेऽशस्तं, मानेन भव-वर्धकम् ॥। १२७५ ।। अशस्तं याचते क्रुद्धो, मरणेऽन्य - वधं कुधीः । अयाचतोग्रसेनस्य, वसिष्ठो हननं यथा ॥ १२७६ ।। -
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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