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________________ मरणकण्डिका - ३३७ अर्थ – अन्य कोई बलवान मनुष्य उसे परवश करके उसका धन बलात् छीन लेते हैं, भाई आदि भागीदार ले लेते हैं, तथा रक्षित किया हुआ भी गुम्बा भन नोर एवं राजा आदि के द्वारा लूट लिया जाता है ।।१२१०॥ कलिं कलकलं वैरं, कुरुते नाथते परम् । म्रियते मार्यते लोकैर्हस्यते चार्थलम्पटः ।।१२११ ॥ अर्थ - धन के कारण मनुष्य झगड़ा करता है, बकबक करता है, वैर करता है, दूसरों से धन की याचना करता है, धन-रक्षणार्थ मर जाता है या दूसरों के द्वारा मार दिया जाता है एवं अधिक लोभी कृपण की लोक हँसी भी करते हैं ।।१२११॥ कृशानु-मूषिकाम्भोभिः, सञ्चितोऽथों विनाश्यते । तत्र नष्टे पुनर्बाद, दह्यते शोक-वह्निना ॥१२१२॥ अर्थ - अत्यधिक प्रयास से संचित धन कभी अग्नि या मूषक या जलादि द्वारा नष्ट हो जाता है। धन नष्ट हो जाने पर वह धनासक्त बहुत अधिक शोक रूपी अग्नि में जलने लगता है अर्थात् धन का विनाश मनुष्य को तीव्र सन्ताप देता है ।।१२१२॥ श्वसित्ति रोदिति सीदति वेपते, गतवति द्रविणे ग्रहिलोपमः । कर-निविष्ट-कपोलतलोऽथमो, मनसि शोचति पूत्कुरुतेऽभितः ।।१२१३ ॥ अर्थ - जिसका धन नष्ट हो जाता है, वह मनुष्य जोर-जोर से श्वास लेने लगता है, रोता है, खेद करता है, काँपता है, धन चले जाने पर पागल के समान चेष्टा करता है, कपोलों पर हाथ रखकर वह अधम अपने मन में चिन्ता करता है और चारों ओर पुकार मारता रहता है ।।१२१३ ।। अन्तरे द्रव्य-शोकेन, पावकेनेव ताप्यते । बुद्धिर्मन्दायते बाढं, मुख्यत्युत्कण्ठते तराम् ॥१२१४॥ अर्थ - जैसे अग्नि से जला मनुष्य संतापित होता है, उससे भी अधिक अपने अन्तरंग में शोक रूपी अग्नि से वह सन्तापित होता है जिसका धन नष्ट हो जाता है। उसकी बुद्धि मन्द अर्थात् मूढ़ हो जाती है अतः वह कभी मूर्च्छित जैसा हो जाता है और कभी उत्कंठित हो जाता है ॥१२१४ ।। उन्मत्तो बधिरो मूको, द्रव्ये नष्टे प्रजायते । चेष्टतो पुरुषो मर्तु, गिरि-प्रपतनादिभिः ।।१२१५।। अर्थ - धन नष्ट हो जाने पर यह मनुष्य पागल हो जाता है, बहिरा एवं गूंगा हो जाता है, और प्रा: पर्वतादि से गिर कर मरने की चेष्टा करता है॥१२१५॥ ___ परिग्रह हिंसा का आयतन है चेलादयोऽखिला ग्रन्थाः, संसजन्ति समन्ततः । सन्ति सन्निहिताश्चित्रास्तस्मिन्त्रगन्तुकास्तथा ॥१२१६ ।।
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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