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________________ मरणकण्डिका - ३२२ इधर उनका पुत्र चेलनाके पास वृद्धिंगत हुआ, उसका नाम रुद्र था। यह क्रूर स्वभाव वाला होनेसे अपने समीपवर्ती बालकोंको पीटता रहता, इससे उलाहना आनेपर चेलनाने कुपित होकर कह दिया कि किसका पुत्र और किसको कष्ट दे रहा है ? इतना सुनकर रुद्रने राजा श्रेणिकसे अपने जन्मका वृत्तांत विदित किया और उसने उदास हो दीक्षा ली। वह ग्यारह अंग और दश पूर्व क्रमसे पढ़ रहा था। दसवें विद्यानुवाद पूर्व का अध्ययन पूर्ण होनेपर रोहिणी आदि विद्यार्य उसके समक्ष उपस्थित हुई। रुद्रमुनिने लोभवश विद्यार्ये स्वीकार करली। अब वह स्वच्छंद भ्रमण करने लगा। एक दिन वनमें सरोवर पर अनेक राजकन्यायें स्नानार्थ आयी थीं, उन्हें देखकर रुद्र कामबाणसे बिद्ध हुआ और उसने विद्याके बलसे सबका हरणकर उन्हें अपना बना लिया। कन्याओंके पिताने उससे युद्ध किया किन्तु रुद्र के पास विद्याका बल होनेसे सजा हार गये और इसतरह रुद्र मुनि भ्रष्ट होकर उन स्त्रियोंके साथ रमने लगा। अंतमें मरकर नरक गया। इसप्रकार स्त्रीसंसर्गसे रुद्रकी दुर्गति हुई। * पाराशरकी कथा * पाराशर नामका एक जटाधारी तापसी था। उसने कुतप द्वारा कुछ विद्याएँ सिद्ध की थीं। एक दिन नौका द्वारा नदी पार कर रहा था। मौका को एक धीवरकी सत्यवती नामकी लड़की चला रही थी, जो सुंदर थी। उसपर पाराशर मोहित हो गया। धीवरसे उसको मांगकर जंगलमें उसके साथ रहने लगा। इसतरह वह तपस्वी लड़कीको देखकर कामुक हो अपने तपसे भ्रष्ट हो गया। अत: स्त्रीसे सदा दूर रहना ही साधु-व्रतीको श्रेयस्कर है। कथा समाप्त। ब्रह्मचर्यव्रत को स्थिर रखने का उपाय भुजङ्गीनामिव स्त्रीणां, सदा संङ्गं जहाति यः। तस्य ब्रह्मव्रतं पूतं, स्थिरी-भवति योगिनः॥११५६॥ अर्थ - नागिन के सदृश जो सदा के लिए स्त्रियों का सम्पर्क छोड़ देता है, उसी योगी का ब्रह्मचर्य व्रत पवित्र एवं स्थिर रहता है ।।११५६ ।। अविश्वस्तोऽप्रमत्तो यः, स्त्री-वर्गे सकले सदा। यावज्जीवमसौ पाति, ब्रह्मचर्यमखण्डितम् ॥११५७॥ अर्थ - जो साधु या पुरुष सम्पूर्ण स्त्रीवर्ग में विश्वास नहीं करता एवं प्रमादरहित अर्थात् सावधान रहता है, वही पुरुष यावज्जीवन अपने ब्रह्मचर्य व्रत को अखण्डित रूप से सुरक्षित रख सकता है॥११५७।। अहं वर्ते कथं कि मे, जनः पश्यति भाषते । चिन्ता यस्येदृशी नित्यं, दृढ-ब्रह्मव्रतोऽस्ति सः।११५८ ॥ अर्थ - मेरी प्रवृत्ति कैसी है अर्थात् मैं किस प्रकार चल रहा हूँ ? अन्य लोग मुझे किस दृष्टि से देखते हैं? और लोग मेरे सम्बन्ध में क्या कहते हैं ? ऐसा चिन्तन जो पुरुष सतत करता है, उसका ब्रह्मचर्य दृढ रहता है॥११५८॥ प्रश्न - इस प्रकार के चिन्तन की प्रेरणा किसे और क्यों दी गई है ?
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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