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________________ मरणकण्डिका- ३११ दाम्पत्य जीवन की अध्रुवता म्रियते वल्लभा पूर्वं स्वयं वा म्रियते पुरा । जीवन्ती जीवतो वान्यैर्हियते बलिभिर्बलात् ।। ११०८ ।। अर्थ - कभी किसी की पत्नी पहले मर जाती है, किसी का पति पहले मर जाता है। कभी पति के जीवित रहते हुए अन्य कोई बलवान पुरुष पति के ही सामने उसकी पत्नी को हरण करके ले जाता है, अतः पति - पत्नी संयोग भी अनित्य है ।। ११०८ ॥ विरज्यते स्वयं तस्याः, सा वा तस्य विरज्यते । समायाति तिष्ठन्ती वा विरुध्यते ।। ११०९ ।। परेण अर्थ - अथवा दोनों के जीवित रहते भी कभी पति अपनी पत्नी से विरक्त हो जाता है, या कोई पत्नी अपने पति से विरक्त हो जाती है, अथवा कोई पत्नी अपने पति को छोड़कर अन्य पुरुष के साथ चली जाती है, कोई पत्नी को छोड़कर दूसरी स्त्री को रख लेता है और कभी पति-पत्नी साथ रहते हुए भी विरुद्ध रहते हैं ॥ ११०९ ॥ शरीर की अधुरता चिरं तिष्ठति संस्कारे, काष्ठ-ग्रावादि-रूपकम् । कलेवरं मनुष्याणां न संस्कारे महत्यपि ।। १११० ॥ अर्थ सार-सम्हाल करते रहने पर लकड़ी एवं पाषाण आदि के रचित स्त्री-पुरुषों की आकृतियाँ चिरकाल तक रह जाती हैं, किन्तु स्नान, आहार तथा व्यायामादि रूप सार-सम्हाल करते हुए भी मनुष्यों का शरीर चिरकाल तक नहीं रह पाता ॥ १११० ॥ यौवनेन्द्रिय- लावण्य-तेजो रूप-बलादयः । गुणाः क्षणेन नश्यन्ति, शारदा इव नीरदाः ।। ११११ ॥ अर्थ - शरद्कालीन मेघ सदृश शरीर का यौवन, इन्द्रियाँ, लावण्य, तेज, रूप एवं बलादि सर्वगुण क्षण मात्र में नष्ट हो जाते हैं ।। ११११ ॥ गतस्याहार - दानार्थं, सुरतस्य तपस्विनः । क्षणान किं महादेव्या, नष्टः कुष्ठेन विग्रहः ॥ १११२ ।। अर्थ- सुरत नाम का राजा, रानी के पास से उठकर साधु को आहार देने गया । इतने में ही क्या उस पटरानी का सुन्दर शरीर क्षण मात्र में कुष्ठ रोग से व्याप्त नहीं हो गया था ? | १११२ ॥ * सुरत राजा की कथा अयोध्याका नरेश सुरत नामका था। पाँचसी रानियोंकी शिरोमणि सती नामकी प्रमुख रानी पर अत्यधिक स्नेह होनेसे सदा उसके निकट रहता था । राजाके मनमें मुनिदानका तो बहुत भाव रहता था। उसने सब राजकार्य छोड़ दिये थे किन्तु मुनियों को आहार देनेका कार्य हमेशा करता रहता, अन्य सब कार्य मंत्रियों पर छोड़ा था ।
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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