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मरणकण्डिका - २९९
अर्थ - संसार में शुद्ध शीलवती नारियाँ भी महापुरुषों के द्वारा प्रशंसनीय होती हैं। जो मन्दबुद्धि हैं वे ही अपनी बुद्धि में स्त्री पुरुष का भेद रखते हैं ।।१०४८ ।।
प्रश्न - स्त्री-पुरुष दोनों एक कैसे हो सकते हैं, न शोएतः भेष है, फिर भेद करने वाला मन्दबुद्धि कैसे ?
उत्तर - यहाँ प्रकरण सदाचार और दुराचार का है। इस दृष्टि से स्त्री हो या पुरुष यदि दुष्ट और कुशील हैं तो दोनों ही निन्दनीय हैं और यदि दोनों शीलवान एवं सदाचारी हैं तो दोनों प्रशंसनीय हैं। इस दृष्टि से दोनों में कोई भेद नहीं है।
सामान्येन ततो नेह, निंदिताः सन्ति योषितः ।
शुद्ध-शीला न गच्छन्ति, दूषणं हि कदाचन ॥१०४९।। अर्थ - इसलिए उपर्युक्त सर्व प्रकरण पढ़कर कोई यह न समझ ले कि केवल स्त्रियों की ही निन्दा की गई है। स्त्री हो या पुरुष यदि कुशील एवं दुराचारी हैं तो दोनों निन्दनीय हैं। शुद्ध शील स्वभाव वाली स्त्रियाँ कभी दूषण को प्राप्त नहीं होतीं ॥१०४९ ॥
शुद्ध-शील-कलितासु जायते, नागनासु चरितं मलीमसम्। आस्पदं हि विदधाति तामसं, हंस-रश्मिषु कदाचनापि किम् ॥१०५०॥
इति स्त्री दोषाः॥ अर्थ - शुद्ध शीलवान स्त्रियों में चरित्र की मलिनता नहीं पाई जाती। क्या कभी सूर्य की उज्ज्वल किरणों में अन्धकार स्थान पा सकता है ? नहीं पा सकता ; वैसे शीलवती नारियों का आचरण कभी मलिन नहीं होता।।१०५०॥
प्रश्न - इस ग्रन्थ में स्त्रियों के इतने अधिक दोष क्यों कहे गये हैं ?
उत्तर - मात्र इस ग्रन्थ में ही नहीं, अपितु जिन किन्हीं ग्रन्थों में भी ब्रह्मचर्य व्रत का विषय आता है वहाँ यही पद्धति दृष्टि-गोचर होती है कि प्रथम स्त्रियों के दोष सविस्तर दर्शाये जाते हैं, पश्चात् अति संक्षेप में पुरुषों के दोष कहे जाते हैं।
यहाँ आचार्य अमितगति ने पुरुषों को अर्थात् विशेषतया मुनिराजों को स्त्रियों के आकर्षण से विरक्ति दृढ़ कराने के लिए स्त्रियों के दोष दर्शाये हैं। पुनश्च नारियों को पुरुषों से विरक्त करने हेतु पुरुषों के दोष भी दर्शाये हैं। इतना अवश्य है कि पुरुषों के दोष अति अल्प श्लोकों द्वारा कहे गये हैं।
प्रश्न - जब स्त्री-पुरुष दोनों का दुराचरण समान रूप से निन्दनीय है तब मात्र स्त्रियों के दूषणों का सविस्तर वर्णन करने का क्या हेतु है? ग्रन्थ रचना आचार्यों ने की है, गणिनी आर्यिकाओं ने नहीं। क्या इस कारण यह अतिक्रमण स्त्रियों पर हुआ है ?
उत्तर - ग्रन्थों का मूल स्रोत भगवान जिनेन्द्र की दिव्य ध्वनि है और जिनेन्द्र का पद पुरुषों को ही प्राप्त