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________________ मरणकण्डिका - २७८ अर्थ - किसी स्त्री को देख कर पुरुष के मन में जब कामवासना उत्पन्न हो जाती है तब उस कामी की दश प्रकार की चेष्टाएँ होती हैं, उन्हें ही कामी के दस वेग कहते हैं। यथा प्रथम वेग में कामी शोकयुक्त होता है, दूसरे में इष्ट स्त्री को देखने की इच्छा करता है, तीसरे वेग में जोर-जोर से श्वास लेने लगता है, चौथे वेग में ज्वर आ जाता है, पाँचवे में शरीर जलने लगता है, छठे में भोजन नहीं रुचता, सातवें में मूर्छा आ जाती है, आठवें में पागल सदृश हो जाता है, नौवें वेग में कुछ जान नहीं पाता और दशवें वेग में मरण को प्राप्त हो जाता है। कामान्ध पुरुष के ये दश वेग संकल्प-वासनानुसार तीन या मन्द हुआ करते हैं। अर्थात् किसी कामी को मन्टरूप, किसी को तीव्ररूप, किसी को दो-तीन या चार-पाँच आदि आकर भी रुक जाते हैं। कोई-कोई कामी गुरुजनों की या सज्जन पुरुषों की शिक्षा प्राप्त कर सुमार्ग पर भी आ जाते हैं ।।९२७-९२८-९२९ ।। ज्येष्ठे सूर्य: सिते पक्षे, मध्याह्ने विमलेऽम्बरे। नरं दहति नो तद्वद्वर्धमानो यथा स्मरः ।।९३० ।। अर्थ - ज्येष्ठमास के शुक्ल पक्ष की मध्याह्न बेला में आकाश के निर्मल रहते हुए सूर्य भी वैसा नहीं जलाता जैसा मनुष्य को वृद्धिंगत होता हुआ काम जलाता है अर्थात् ज्येष्ठमास के सूर्यताप से भी इस काम का ताप प्रचण्ड एवं असह्य है।३९३० ।। दिवसे प्लोषते सूर्यो, मनोवासी दिवा-निशम्। अस्ति प्रच्छादनं सूर्ये, मनोवासिनि नो पुनः ॥९३१ ॥ अर्थ - सूर्यामि तो केवल दिन को ही जलाती है किन्तु कामाग्नि रात-दिन जलाती है। सूर्य के ताप से बचने के उपाय तो छाता आदि हैं किन्तु कामाग्नि से बचने का कोई उपाय नहीं है ।।९३१ ॥ वलिबिध्याप्यते नीरैर्मन्मथो न कदाचन । प्रप्लोषते बहिर्वहिहिरन्तश्च मन्मथः ॥९३२॥ अर्थ - अग्नि को तो जल से शान्त किया जा सकता है, किन्तु कामाग्नि किसी के द्वारा भी शान्त नहीं होती | अग्नि तो बाह्य शरीर को ही जलाती है किन्तु कामाग्नि बाह्याभ्यन्तर अर्थात् शरीर और आत्मा दोनों को जलाती है।९३२॥ बन्धुं जाति कुलं धर्म, संवासं मदनातुरः। अवमन्य नरः सर्वं, कुरुते कर्म निन्दितम्॥९३३॥ अर्थ - कामातुर मनुष्य अपने बन्धुजन, जाति, कुल, धर्म और साथ में रहने वाले मित्रादि की भी अवमानना करके निन्दित कार्य करता है ।।९३३॥ पिशाचेनेव कामेन, व्याकुली-कृत-मानसः। हिताहितं न जानाति, निर्विवेकी-कृतोऽधमः ।।९३४ ॥
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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