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________________ परणकण्डिका - २७६ है, याचना करता है, सेवा करता है, इष्ट स्त्री दिखाई देने पर हर्षित होता है, दौड़ता है, अपने जाति, कुल एवं प्रतिष्ठा का गौरव छोड़ देता है और हीनता को प्राप्त होता है, इस प्रकार कामातुर हुआ मनुष्य क्या-क्या नहीं करता ? अर्थात् सारे अयोग्य कार्य करता है।।९१६ ।। आसने शयने स्थाने, नगरे भवने वने। स्वजनेऽन्य-जने कामी, रमते नास्तचेतनः ॥९१७॥ अर्थ - कामावेग से जिसकी मूर्छा मृतप्राय: हो गई है ऐसा कामी पुरुष आसन में, शयन में, स्थान में, नगर में, भवन में, वन में, स्वजन में एवं परजनों में कहीं भी नहीं रमता है ॥९१७ ।। न रात्रौ न दिवा शेते, न भुक्ते न सुखायते । दष्टः काम-भुजङ्गेन, न जानाति हिताहिते ।।९१८।। अर्थ - कामरूपी सर्प द्वारा काटा हुआ मनुष्य न हिताहित को जानता है, न रात-दिन सोता है, न भोजन करता है और न कहीं सुख का अनुभव करता है ।।९१८ ॥ कामाकुलित-चित्तस्य, मुहूर्तो वत्सरायते। सर्वदोत्कण्ठ-मानस्य, भवनं काननायते ॥९१९॥ अर्थ - कामवासना से आकुलित चित्त वाले मनुष्य को एक मुहूर्त एक वर्ष सदृश लगता है। स्त्री की प्राप्ति के लिए उत्कण्ठित मन वाले उस पुरुष को सुन्दर भवन भी जंगल सदृश प्रतीत होता है।।९१९ ।। हस्तान्यस्त-कपोलोऽसौ, दीनो ध्यायति सन्ततम्। प्रस्विधति तुषारेऽपि, कम्पते कारणं विना ॥९२०॥ अर्थ - वह कामी पुरुष अपनी हथेली पर गाल रखकर दीनमुख होता हुआ सतत इष्ट स्त्री का ध्यान करता है, शीतकाल में भी पसीने से भीग जाता है और बिना कारण ही उसके अंग काँपते रहते हैं ।।९२० ।। अरत्यग्निशिखा-जालैबलद्भिरनिवारितैः। सोन्तर्विदह्यते पीतैस्तनस्ताम्र-द्रवैरिव ॥९२१॥ अर्थ - जैसे ताँबे के खौलते हुए पिघले रस को पीने से अन्तर में भयंकर दाह होती है उसी प्रकार जिसका कामोद्रेक अनिवारित है ऐसा पुरुष जाज्वल्यमान अरतिरूप अग्नि की लपटों द्वारा अन्तर में सदा जलता रहता है ।।९२१॥ मन्दायते मतिर्याति, सद्यो वचन-कौशलम् । मदनेन ज्वरेणेव, वाधितस्य वितापिना ।।९२२ ॥ अर्थ - कामी की बुद्धि मन्द हो जाती है, वचन-कौशलता तत्काल नष्ट हो जाती है। सन्ताप कारक मदनज्वर से पीड़ित हुए पुरुष की ऐसी अनेक प्रकार की स्थिति होती है।९२२ ।। काम्यमानं जनं कामी, यदा न लभते कुधीः। मुमूर्षति तदोद्विग्नो, नग-प्रपतनादिभिः ॥९२३ ।।
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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