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________________ मरणकण्डिका - २६३ अर्थ - इस लोक में जो मुनि दुखों को नहीं चाहता है, उस मुनि को धैर्यपूर्वक सदा ही अहिंसाव्रत में उपयोग लगाना चाहिए।८५० ।। छन्द-शालिनी अप्येकाहर्व्यापकेन प्रकृष्टः, प्राप्तः पाणः प्रातिहार्य सुरेभ्यः। एकेनैव प्राणिरक्षा-व्रतेन, क्षिप्तः क्रूरोऽनेक-नक्रौघ-मध्ये १८५१ ।। अर्थ - यमपाल नामक चाण्डाल एक दिन के प्राणीरक्षा - व्रत से देवों द्वारा प्रतिहार्य को प्राप्त हुआ था और एक ही हिंसा से क्रूर राजपुत्र अनेक नक्रों से युक्त जलाशय में फेंका गया था ।।८५१।।। __* यमपाल चांडालकी कथा - पोदनपुरमें राजा महाबल रहता था। एक बार उसने समस्त नगरमें नंदीश्वर पर्वमें आठ दिन के लिए जीवघात एवं मांसनिषेध घोषित किया। एक दिन राजाके पुत्र ने ही मेंढ़े को मारकर खा लिया क्योंकि वह मांसलोलुपी था। उसके कृत्यका जब ग़जाको पता चला तब उसने उसे कठोर प्राण दण्डकी सजा दी। न्यायप्रिय राजाका न्याय सचमुचमें सबके लिये समान होता है। कुमारको वधस्थान पर ले जानेको कहा और चांडालको मारनेके लिए बुलाया गया, वह दिन चतुर्दशी तिथिका था, यमपालने एक मुनिसे चतुर्दशीके दिन हिंसा नहीं करने का नियम लिया था। उसने अपने नियमपर अडिग रहते हुए फांसी देनेको मना करते हुए कहा कि मेरा आज अहिंसाव्रत है मैं यह काम नहीं कर सकता। राजाको क्रोध आया। राजाने कहा कि इन दोनोंको ले जाकर शिशुमार तालाब में पोटली बाँधकर फेंक दो। राजाज्ञा के अनुसार कर्मचारियों ने दोनों की पृथक्-पृथक् पोटली बाँधकर तालाब में डाल दी। यमपाल के अहिंसाव्रत के प्रभाव से उसको देवों ने जल से निकालकर सिंहासन पर बिठाया और उसके अहिंसा व्रतमें दृढ़ रहनेकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। जो पापी मांसलोलुपी राजकुमार था, उसको तो सब मगरमच्छ खा गये। इसप्रकार एक दिनके अहिंसाव्रतसे चांडाल बड़ी भारी विभूति और आदरको प्राप्त हुआ तो जो विधिपूर्वक पूर्ण अहिंसाव्रत का पालन करेगा, उस मुनि के विषय में क्या कहना ? वह तो निर्वाण प्राप्त करता ही है। छन्द-वंशस्थ परां सपर्या ददती निरत्यये, निवेशयन्ती बुधयाचिते पदे । करोत्यहिंसा जननीव पालिता, सुखानि सर्वाणि रजांसि धुन्वती॥८५२॥ इति अहिंसामहाव्रतम्॥ अर्थ - यह अहिंसारूप जननी श्रेष्ठ पूजा को देती है, बुधजनों द्वारा याचित अविनाशी पद में प्रवेश कराती है और पापों का नाश कराती हुई सर्व सुखों को करती है। इस प्रकार अहिंसा का पालन करने पर इच्छित फल मिलते हैं।।८५२॥ इस प्रकार अहिंसा महाव्रत का वर्णन पूर्ण हुआ।
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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