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________________ मरणकण्डिका - १५० आगन्तुक मुनि को साहाय्य देना चाहिए देयः सङ्घाटकोऽलयमागताय दिन-गया। असंस्तुतस्य यत्नेन, शय्या-संस्तरकावपि ॥४२९॥ अर्थ - संघाटक का अर्थ है सहायता प्रदान करना। आगत मुनि को तीन दिन तक सहाय प्रदान अवश्य करना चाहिए। तथा रहने को वसतिका और चटाई आदि संस्तर देना चाहिए । यद्यपि अभी उनकी परीक्षा नहीं ली है इससे वह साथ में आचरण योग्य नहीं है तथापि उन्हें साहाय्य देना चाहिए ॥४२९ ।। तीन दिन के उपरान्त का कर्तव्यय सङ्घाटको न दातव्यो, नियमेन ततः परम् । यतेर्युक्त-चरित्रस्य, शय्या-संस्तरकावपि।।४३० ।। अर्थ - आगत मुनि का चारित्र युक्त भी हो तो भी बिना परीक्षा किये तीन दिन के बाद उन्हें साहाय्य नियमतः नहीं ही देना चाहिए, वसतिका एवं संस्तर भी नहीं देना चाहिए ।।४३० ॥ प्रश्न - चारित्र युक्त होते हुए भी तीन दिन बाद साहाय्य क्यों नहीं देना चाहिए ? उत्तर - मार्ग की थकावट आदि के कारण तीन दिन तक परीक्षादि लेने का निषेध है, अत: तीन दिन के बाद यदि वह गण में रखने योग्य नहीं है तब तो साहाय्य देना योग्य ही नहीं है किन्तु यदि उनका आचरण तो योग्य दिखता है परन्तु अभी परीक्षा पूर्ण नहीं हो पाई है तो भी उन्हें संघ में आश्रय, वसतिका एवं संस्तर नहीं देना चाहिए। बिना परीक्षा साहाय्य देने में दोष गृह्णानस्य यते: सूरेरनिराकृत-दूषणम् । उद्गमोत्पादनाहार-दोष-शुद्धिर्न जायते॥४३१ ॥ अर्थ - आगत मुनि के उद्गमादि दोषों को दूर किये बिना ही यदि उसे ग्रहण कर लिया जाता है तो ग्रहण करनेवाले आचार्य के भी उद्गम, उत्पादन और एषणा आदि दोषों की शुद्धि नहीं होती। अर्थात् यदि आगत मुनि दोषी होते हुए भी आलोचना नहीं करता है और आचार्य उन्हें ग्रहण कर लेते हैं तथा संघ को उनके साथ रहने की अनुमति देते हैं तो उनकी अनुमोदना के भागीदार हो जाने से आचार्य और उनका संघ भी अशुद्ध ही होगा ।।४३१॥ स प्रणम्य गणनायकं विधा, भाषते निशि दिवाथ संश्रितः । आगमस्य विनयेन कारणं, सिद्धये न विनयं विना क्रिया ।।४३२ ।। अर्थ - आगत मुनि मन, वचन, काय से आचार्य को नमस्कार कर तथा दिन-रात उनके आश्रय में रह कर विनयपूर्वक अपने आने का कारण कहता है, क्योंकि विनय के बिना की गई क्रिया कार्यसिद्धि के लिए नहीं होती ॥४३२॥
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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