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________________ मरणकण्डिका - १३१ तेषु संसर्गतः प्रीतिर्विसम्भः परमस्ततः। ततो रतिस्ततो व्यक्तं, संविनोऽप्यस्ति तन्मयः ॥३५० ॥ अर्थ - संसार से भयभीत भी मुनि पार्श्वस्थादि के बार-बार संसर्ग से सर्वप्रथम प्रीतियुक्त होता है अर्थात् उनसे प्रीति करने लगता है। प्रीति हो जाने से उनके प्रति विश्वास बन जाता है, उस विश्वास से उसका मन उन भ्रष्ट साधुओं के प्रति अनुरक्त हो जाता है और उनमें अनुराग हो जाने से अन्त में स्वयं वैसा ही भ्रष्ट हो जाता है अर्थात् मन से भ्रष्ट होते ही वचन एवं काय से भी भ्रष्ट हो जाता है ।।३५० ।। शुभाशुभेन गन्धेन, मृत्तिका यदि वास्यते । तदा नान्य-गुणैरत्र, कथ्यतां पुरुषः कथम् ।।३५१ ।। अर्थ - यदि सुगन्ध अथवा दुर्गन्ध के संसर्ग से मिट्टी भी सुगन्धित या दुर्गन्धित हो जाती है अर्थात् अन्य वस्तुओं के गुणों या दुर्गुणों से जब जड़ पदार्थ में भी परिवर्तन आ जाता है तब चेतन-आत्मा में परिवर्तन कैसे नहीं आवेगा? अवश्य ही आयेगा ।।३५१।। शिष्टोऽपि दुष्ट-सङ्गेन, विजहाति निज गुणम्। नीरं किं नाग्नि-योगेन, शीतलत्वं विमुञ्चति ॥३५२॥ अर्थ -- दुष्टजन के संसर्ग से सज्जन भी अपने गुण छोड़ देता है। क्या अग्नि के संसर्ग से जल निज शीतलत्व गुण को नहीं छोड़ देता है ? छोड़ ही देता है ।।३५२ ।। लाघवं दुष्ट-सङ्गेन, शिष्टोऽपि प्रतिपद्यते। किं न रत्नमयी माला, स्वल्पार्धा शव-सङ्गता ॥३५३ ।। अर्थ - दुष्ट के सम्पर्क से शिष्ट पुरुष भी लघुता को प्राप्त हो जाता है। क्या रत्ननिर्मित माला भी शव के सम्पर्क से अल्प मूल्य वाली नहीं हो जाती ? अवश्य हो जाती है ||३५३ ।।। संयतोऽपि जनैर्दुष्टो, दुष्टानामिह सङ्गतः। क्षीरपा ब्राह्मणः शौण्डः, शौण्डानामित्र शंक्यते ॥३५४ ॥ अर्थ - दुष्टों की संगति में आया हुआ संयमी मुनि भी लोगों द्वारा दुष्ट ही माना जाता है। जैसे कि दुग्ध पीनेवाला ब्राह्मण मद्यपायी के सम्पर्क से मद्यपायी रूप से ही शंकित किया जाता है॥३५४ ।। पर-दोष-परीवाद-ग्राही लोको यतोऽखिलः। अपवादपदं दोषं, मुञ्चध्वं सर्वदा ततः।।३५५॥ अर्थ - हे यतिगण ! यह सम्पूर्ण लोक पर के दोष कहने को सदा ही उत्सुक रहता है, अत: अपवाद का स्थान ऐसा दोष तुम लोग सर्वथा छोड़ दो॥३५५ ।।
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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