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________________ मरणकण्डिका - ७६ उत्तर - 'अन्नं वै प्राणाः' अन्न ही प्राण है। इस प्रकार यहाँ भी कारण में कार्य का उपचार करके कन्दर्पदेवगति, किल्विषदेवगति, आभियोग्य देवगति, असुर देवगति और सम्मोहदेवगति के कारणभूत आत्मपरिणामों को कन्दर्प भावना आदि के नाम से कहा गया है। कन्दर्प भावना हास्य कान्दर्प कौत्कुच्य, पर-विस्मय-कोविदः। कान्दी भावनां दीनो, भजते लोलमानस: ।।१८८ ।। अर्थ - जो चंचल चित्तवाला दीन मुनि दूसरों को विस्मय उत्पन्न कराने में चतुर होता है और हास्य, कन्दर्प तथा कौत्कुच्य आदि करता रहता है वह कन्दर्प भावना करनेवाला कहा गया है |११८८ ॥ प्रश्न - हास्य एवं कान्दर्प आदि किसे कहते हैं? उत्तर - गन्दी हँसी हँसना हास्य, राग की अधिकता से हास्य मिश्रित असभ्य वचन बोलना कन्दर्प और राग की अधिकता युक्त हँसते हुए दूसरों को लक्ष्य कर शरीर से कुचेष्टा करना कौत्कुच्य है। इन कन्दर्प एवं कौत्कुच्य पूर्वक कुछ कौतुक दिखाकर दूसरों को आश्चर्य में डालना ये सब कन्दर्प भावनाएँ हैं। किल्विष भावना सर्वज्ञ-शासन-ज्ञान-धर्माचार्य-तपस्विनाम् । निन्दापरायणो मायी, कैल्विर्षी श्रयतेऽधमः ।।१८९ ।। अर्थ - सर्वज्ञभगवान के शासन की, जिनागम की, वीतरागमयी जैनधर्म की, आचार्यों की एवं तपस्वियों की निन्दा में परायण और मायावी अधम मुनि कैल्विषी भावनावाले होते हैं ।।१८९॥ प्रश्न - इस भावना का क्या आशय है ? उत्तर - इसका आशय यह है कि जो मुनि सर्वज्ञदेव या जिनागम या चारित्रमयी धर्म, आचार्य, उपाध्याय, साधुजन एवं तपस्वी आदि के बाह्य आचरण में आदर भाव दर्शाते हैं किन्तु अभ्यन्तर में उन्हें तिनके के सदृश तुच्छ समझते हैं और उनकी निन्दा करते हैं, अर्थात् धर्मात्माओं के साथ अन्तरंग में मायाचारी रखते हुए बाह्य में श्रद्धा, भक्ति एवं आदर का दिखावा करते हैं उन्हें किल्विष भावनावाला समझना चाहिए । आभियोग्य भावना मन्त्र-कौतुक-तात्पर्य भूतिकर्मीषधादिकम् । कुर्वाणो गौरवाद्यांमाभियोगीमुपैति ताम् ॥१९०।। अर्थ - जो मुनि मन्त्र-कौतुक तत्परता, भूतिकर्म एवं औषधादि का प्रयोग अपने गौरव एवं तीनों गारव के लिए करते हैं वे आभियोग्य भावना युक्त होते हैं ॥१९० ॥ प्रश्न - मन्त्रादि करने वाले को आभियोग्य भावनावाला क्यों कहा है ?
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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