________________
85.16.301
महाकइपुष्फयंतबिरयर महापुरागु
[ 97
जलु थलु वि णिरु रसिउ थरहरइ जा ताव धीरेण सरलच्छितण्हेण सुरथुइण वित्थरिउ
महिहरउ
तमजडिउं महिविवरु फुप्फुबई परिघुलइ तरुणाई तहाई कायरई पडिया चित्ताई हिंसालचंडाई तावसई दरियाई
गोउलु वि। भयतसिउ। किर मरइ। थिरभाववीरेण। जयलच्छिकण्हेण। भुयजुइण। उद्धरिउ। दिहियरउ'। पायडिउं। फणिणियरु। विसु मुयइ। चलवलइ। हरिणाई। पाट्ठाई। वणयरइं। रडियाई। चत्ताई। चंडालकंडाई। परवसई। जरियाई।
25
जल और थल हिल उठते हैं, गोकुल अत्यन्त आवाज करता है। भय से त्रस्त है, थरथराता है, मरता है। तब तक स्थिरभाववाले धीर, वीर, सरल आँखोंवाली जयलक्ष्मी के चाहनेवाले कृष्ण ने देवों से संस्तुत अपना भुजयुगल फैलाया, और उठा लिया धैर्य करनेवाला पहाड़। तम से जड़ित और धरती का विवर और नागसमूह प्रकट हो गया। वह फू-फू करता विष उगलता है, फैलता है, चिलबिल करता है। तरुण हरिण त्रस्त और नष्ट हो जाते हैं। कायर वनचर गिर जाते हैं और चिल्लाने लगते हैं, फेंक दिये जाते हैं, छोड़ दिये जाते हैं। चाण्डाल हिंसा करते हैं। पानी प्रचण्ड है, तापस परवश हैं, भय से आक्रान्त और ज्वराक्रान्त हैं।
4. P दिहिहरत । 5. AB पृष्फुवइ, PS पुप्फुयइ। G. B बरियाई। 1.AP रत्ताई। 8. A रडियाई।