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________________ 98 ] महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु [85.16.31 घत्ता-गोवद्धणपरेण गोगोमिणिभारु व जोइट। गिरि गोवद्धणउ गोवद्धणेण उच्चाइउ" ॥16॥ (17) दुवई-ता सुरखेयरेहिं दामोयरु' यासारत्तरुंधणो। . गोवद्धणु भणेवि हक्कारिउ कयगोजूहवद्धणो || छ । कण्हें बाहुदंडपरियरिब गिरि छत्तु व उच्चाइवि धरियउ । जलि पवहंतु जंतु ण' उवेक्खिउ धारावरिसे गोउलु रक्खिउं। परउवयारि सजीविउ देंतहं दीणुद्धरणु विहूसणु संतहं । पविमल कित्ति भमिय महिमंडलि" हरिगुणकह हूई' आहेडलि। कालि गलतइ कतिइ अहियई कलिमलपंकपडलपविरहियई। महुरापुरवार जमराहें महिंधई जरताला स्वण मिहेयई। तिणि ताई तेलोक्कपसिद्धई रवटकारदेहसुहणिद्धई। तं रयणत्त कहिं मि णिरिक्खिउं पुच्छिउ कसें वरुणे अक्खिउँ । 10 णायामिजइ विसहरसवणे जो जलयरु आऊरइ वयणे। जो सारंगकोडि गुणु" पावइ सो तुज्झु वि जमपुरि पहु दावइ । घता-गो-वर्धन (गायों की वृद्धि, उन्नति) करनेवाले कृष्ण के द्वारा उठाया गया गोवर्धन गिरि ऐसा मालूम हो रहा था जैसे गोवर्धन में तत्पर व्यक्ति ने भू और लक्ष्मी का भार उठा लिया हो। ( 17 ) तब वर्षा ऋतु को रोकनेवाले और गौ-समूह का संवर्धन करनेवाले दामोदर को देवों और विद्याधरों ने गोवर्धन कहकर पुकारा। बाहुदण्ट से घिरा हुआ पर्वत कृष्ण ने छत्र की तरह उठाकर धारण कर लिया। जल में वहते हुए जन्तु की भी उन्होंने उपेक्षा नहीं की और मेघवर्षा से गोकुल की रक्षा की। दूसरों के उपकार में अपना जीवन अर्पित कर देनेवाले सन्तों के विभूषण और दीनों के उद्धारकर्ता। उनकी पवित्र कीर्ति पृथ्वीमण्डल में घूम गयो। हरिगुण की कथा मानो इन्द्र-कथा हो गयी। समय बीतने पर उनकी कान्ति और अधिक हो गयो, तथा कलिमल के पटल से मुक्त हो गयी। मथुरा नगरी के अरहन्तालय (जिन-मन्दिर) में देवों के द्वारा पूज्य तीन रत्न रखे हुए थे जो तीनों लोकों में प्रसिद्ध थे-शंख, धनुष और नागशय्या। कंस ने कभी उस रत्नत्रय को देखकर वरुण से पछा था। उसने कहा था-"जो नागशय्या के द्वारा कष्ट नहीं पाता, जो अपनी ध्वनि से शंख को फूंक देता है और जो धनुष पर डोरी चढ़ा देता है, वह तुम्हें भी यमपुरी भेज सकता ५. A गांवद्धगधरे गांबद्धणण। 10. Aच्यावउ: 5 उधारउ । (17)1. S द्वानीपर। 2. ।। नासारत् । ३. ४ परियस्ति । 1. A उपेक्सि BP उवाख3। . 'बरितहो; As. वरिसें against Mss h. Aणहमउलि। 1.S | B AP परिहिरई। 4. ग्यगात्त। 1. HS गुण। 11. पुरे।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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