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________________ 85.18.121 महाकइपुष्फयतविरयड महापुराणु [ 99 घत्ता-उग्गसेणसुयणु बिहुरंधरासि" तारिव्वउ। तेण णराहिवइ जरसिंधु" समरि मारिव्यउ" ॥17॥ दुवई-पत्तिय कंस कुसलु णउ पेक्खमि पत्ता मरणवासरा। पूयण वियडसयडजमलज्जुणतलखरदुहियहयवरा' ॥ छ | जित्ता' जेण गंदगोवालें जाउहाणु पसु भणिवि ण मारिउ जेण अरिहवसहु ओसारिउ । फुल्लकडंबविडविदिपणाउसि' सत्त दियह परिसंतइ पाउसि । गिरि गोवद्धणु जें उच्चाइ सो जाणमि तुम्हारउ दाइज। जीविउं सहुं रज्जेण हरेसइ दइवहु पोरिसु काई करेसइ। तं णिसुणिवि णियबुद्धिसहाएं पुरि डिडिमु देवाविउ राएं। जो फणिसयणि सुयइ धणु णावइ संखु ससासें पूरिवि दावइ। तहु' पहु देइ देसु दुहियइ सहुं ता धाइयउ णिवहु सई महुं महं। 10 पत्ता-दसदिसु वत्त गय मंडलिय असेस समागय"। __णं गणियारिकए दीहरकर मयमत्ता गय" ||1|| पत्ता-दुःख के अन्धकार की राशि उग्रसेन को वह तारेगा और हे राजन् ! उसके द्वारा जरासन्ध युद्ध में मारा जाएगा। ( 18 ) हे कंस ! तुम विश्वास करो, मैं कुशल नहीं देखता; तुम्हारे मरने के दिन आ गये हैं। पूतना, विकट, शकट, यमलार्जुन, ताइवृक्ष, गधा और घोड़े को, शत्रु-योद्धाओं के संघर्ष-मद को दूर करनेवाले जिस नन्दगोपाल ने जीता है और अरिष्ट को पशु समझकर नहीं मारा और उसे बैल समझकर हटा दिया, खिले हुए कदम्ब-वृक्षों को आयु देनेवाले पावस के लगातार सात दिनों तक बरसते रहने पर जिसने गोवर्धन पर्वत को उठा लिया, उसे मैं तुम्हारा शत्रु मानता हूँ। वह जीवन के साथ तुम्हारे राज्य का अपहरण करेगा, देव का पौरुष इसमें क्या करेगा ?" यह सुनकर, अपनी बुद्धि ही है सहायक जिसकी, ऐसे राजा कंस ने नगर में मुनादी करवा दी-"जो नागशय्या पर सोएगा, धनुष चढ़ाएगा (झुकाएगा) और श्वास से शंख को फूंककर दिखाएगा, उसे राजा अपनी कन्या के साथ देश देगा।" (यह सुनकर) सब लोग, मैं पहले मैं पहले करते हुए दौड़े। धत्ता-यह वार्ता दसों दिशाओं में फैल गयी। समस्त माण्डलिक राजा आये, मानो हथिनी के लिए लम्बी सैंडबाले मतवाले महागज आये हों। 12. ABPS बिहुरंबुरासि।।3. P5 जरसेंघु। 14. 5 मारेयर । (18) J. AP "ज्जुणतरुखर | 2. P जित्तउ। 3. A "कर्षक: "कर्दछ। 4. B पावसि। 5. AP जेणुच्चाया। 6. 5 जागोवे। 7. P पहो। H. Aदेसु देह । 9. " दुहिए। 10. BAIs. ता घाइय णिय होसह महं महं। 11. S समागया। 12. P दीहरयर। 13. AP मयमत्त। [4.5 गया।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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