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________________ 5 100 ] महाकइपुष्पायंतविरयर महापुराणु [85.19.! (19) दुवई-भाणु सुभाणु णाम विसकंधर 'वरजरसिंधणदणा। संपत्ता तुरंत जउणावहि थिय खंचियससंदणा' ॥ छ ॥ अरिकरिदंतमुसलहय कलुसिय जइ वि तो वि अरविंदहिं वियसिय। काली' कतिइ जई वि सुहावई तो वि तब जणघुसिणे भावइ । जइ वि तरंगहिं चवलहिं बच्चइ तो वि तुरंगह सा ण पहुच्चइ। जइ वि तीरि वेल्लीहर दावइ तो वि ण दूसह संपय पावइ। पविउलु दिउँ सिविरु' पमुक्कउं गोवबिंदु' साणंदु पढुक्कउ। तणकयवलयविहूसियधिरकरु वणकणियारिकुसुमरयपिंजरु। ससुसिरवेणुसद्दमोहियजणु काणणधरणिधाउमंडियतणु। करणिबंधणवेढियकंदल कंदलदलपोसियमहिसीउल । घत्ता-गुंजाहलजडियदंडयविहत्यु" संचल्लिउ। महिवइतणुतहेण आसण्णु पढुक्कड बोल्लिाउ ॥19॥ (20) दुवई- भो आया किमत्थु कि जोयह दीसह पवर' दुज्जया। पभणइ णंदपुत्तु के तुम्हई कहिं गंतुं समुज्जया ॥ छ । (19) श्रेष्ट जरासन्ध के, वृषभ के समान कन्धोंवाले भानु, सुभानु नाम के पुत्र शीघ्र की यमुना-तट पर पहुंचे और अपने रथों को टहराकर स्थित हो गये। यद्यपि यमुना शत्रुओं के हाथियों के दाँतोंरूपी मूसलों से आहत और कलुषित है, तो भी वह कमलों से विकसित है। यद्यपि कान्ति से काली है, तब भी अच्छी लगती है और लोगों को केशर से ताम्र दिखाई देती है। यद्यपि यह चंचल तरंगों से बहती है, तो भी तुरंग उसे नहीं पा सकते। यद्यपि वह किनारों पर लतागृह दिखाती है, फिर भी वस्त्रों की सम्पत्ति उसे प्राप्त नहीं कर सकती। उन्होंने विशाल मुक्त शिविर देखा और गोपसमूह सानन्द वहाँ पहुँच गया। जिसके स्थिर कर तिनकों के बने वलयों से विभूषित हैं, जो बन के कनेर पुष्पों के पराग से पीला है, जो अपनी सच्छिद्र बाँसुरी के शब्द से जनों को मुग्ध कर लेता है, जिसका शरीर वनभूमि की धातुओं से शोभित है, जिसके कपाल मजबूत बन्धनों से बँधे हुए हैं और जो लता-पत्रों से भैसों को पोषित करता है, घत्ता-जिसके हाथ में गुंजाफलों से विजड़ित दण्ड हैं, ऐसा गोण्ममूह चला। तब निकट पहुँचने पर राजा के पुत्र ने उससे कहा-- (20) "अरे : तुम लोग किसलिए आये ? क्या देखते हो, बहुत प्रबल दुर्जय दिखाई देते हो !" तब नन्द-पुत्र (19) 1. PS "जरसेंध | P.AP जडणात। A मंचियः। 4. B कालिए। 5.5 चबल पबच्चड़। CAPS तोरवेली 17.AP सिमिरु। 8. B गोरबंदु । 9. वरकणियार, BP यणकणिशर | . दंडहत्यु। (20) !.AP परमदुञ्जया।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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