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________________ I 85.21.4] महाकपुष्यंतविरय महापुराणु अम्हई गंदगोव फुत्त भणइ सुभाणु जणणु अम्हारउ बढ़ जाएसहं महुरापट्टणु तहिं विरएव सरासपचप्पणु पुलयवसेणुग्गय मंचय हवं मि जामि गोविंदें भासि तरुणि ण लहमि लहमि विहि जाणइ तं णिसुप्पि बालें बालउ आया पुच्छहुं भणहुं णिरुत्तरं । अद्धमहीसरु रिउसंघारउ । संखाऊरणु" फणिदलवट्टणु । कण्णस्यणु लएसहुं घणथणु । तं सुणिवि जोयं विभुय | करमितिविहु जं पई णिद्देसितं । हालिउ किं णिवधीयउ माणइ । जोय" कंसहु" अयसु व कालउ । घत्ता - माहवपयजुयलु" उद्दिटु" सुभाणुं रत्तउं । दिसकरिकुंभयलु सिंदूरें णावइ छित्तॐ" ॥20॥ ( 21 ) दुबई - दप्पणसंणिहाई रुइवंतई विरइयचंदहासई । क्खड़ वसुह णाई मुहपंकयपविलोयणविलास ॥ छ ॥ जंघउ पुणु लक्खणहिं समग्ग वारण आरोहणकिणजोग्ग' । ऊरउ वहुसोहग्गपवित्तिउ तियमणकंदुयघुलणधरित्तिउ' । [ 101 5 10 कहता है - "तुम लोग कौन हो, कहाँ जाने के लिए उद्यत हो ?" "हम लोग नन्द गोप हैं। हमने साफ बता दिया है, हम पूछने आये हैं; निश्चित बताएँ ।" सुभानु कहता है- "हमारा पिता शत्रुसंहारक और अर्धचक्रवर्ती है । हे मूर्ख, मैं मथुरानगरी जा रहा हूँ, वहाँ शंख बजाकर, नागशय्या का दलन कर, धनुष चढ़ाकर, सघन स्तनोंवाली कन्या ग्रहण करूँगा । " यह सुनकर जिनमें पुलक विशेष से रोमांच उत्पन्न हो गया है, ऐसी अपनी भुजाओं को देखते हुए गोविन्द ने कहा - " मैं भी जाऊँगा और जो तुमने निर्दिष्ट किया, वे तीनों काम मैं भी करूँगा। तरुणी पाता हूँ या नहीं पाता हूँ यह तो विधाता ही जानता है। गोप राजा की बेटी को कैसे माँग सकता हूँ ?" यह सुनकर बालक ने बालक की ओर देखा जो कंस के अयश की तरह काला था । घत्ता - सुभानु ने कृष्ण के रक्त चरण-युगल को देखा, मानो दिग्गज का कुम्भस्थल सिन्दूर से पुता हुआ हो । ( 21 ) उसके नख दर्पण के समान कान्तिवान, चन्द्रकिरणों का उपहास करनेवाले और धरती के मुख-कमल के देखने के लिए मानो विलास (दर्पण) थे। लक्षणों से सम्पूर्ण उसकी जाँघें हाथी पर चढ़ने की मांसग्रन्थि के योग्य थीं, अनेक सौभाग्यों की प्रवृत्तियोंवाला उसका वक्ष स्त्रियों की मनरूपी गेंदों के लिए क्रीडाभूमि था । 2. 11 भणहिः । भ्रणहं । 3.5 संखारणु। 4. S फणिटलु। 5. A सासणकप्पणु। 6. AP नियंलें। 7. S जाति । . K पिवधूयउ 1 9 APS जोइछ । 10. A कतिहि अजसु । 11. AP "जुबलु । ५. P ओदि। 13. A लित्त । (21) 1. AP, Als वसुहणारिमुह against Mss. und against gloss. 2. P समस्यउं । 3. B किं ण। 1. B "कंव" P "क" ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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