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________________ 85.15.20 महाकइपुप्फयंतविरयड महापुराणु [ 95 भायरु सिसुकीलारवरंगिउ' हलहरेण दिट्ठिइ आलिंगिउ। भुयजुयलउं पसरंतु णिरुद्धउं जायउं हरिसे अंगु सिणिद्धउँ । चिंतिवि तेण कंसपेसुण्णउँ आलिंगणु देंतेण ण दिपणउं। गाढसिणेहवसेण णवंत आणाविय रसोइ गुणवंतइ। गंधफुल्लदीवउ' संजोइउ भोयणु मिट्ठउं मायइ ढोइउं। अल्लयदलदहिओल्लियकूरहि मंडयपूरणेहि घियपूरहि। णाणाभक्खविसेसहिं जुत्तउं सरसु भाविभूणाहें भुत्तउं। सिरि . णिबद्धवेल्लीदलमालह कंचणदंड दिण्ण गोवालह। सुण्हई" मउदेवंगई वत्थई भूसणाई मणिकिरणपसत्थई। पुणु जणणिइ तिपयाहिण देतिइ तणयह उप्परि खीरु सवंतिइ । घसा--पोरिसरयणणिहि ।'गुणगणविभावियवास" । कुलहरलच्छियइ णं सई अहिसित्तर केसउ ॥14॥ (15) टुवई-दीसइ णंदणंदु' णारायणु जणणीदुद्धसित्तओ। ‘णाई तयाणीतु हर सतह कमलित्तओ ॥छ । किया, अपने फैलते हुए बाहुओं को उसने रोक लिया, हर्ष से उसका शरीर स्निग्ध हो गया। कंस की दुष्टता की चिन्ता कर, मानो आलिंगन देते हुए बलराम ने आलिंगन नहीं दिया। नम्र माँ, प्रगाढ़ स्नेह के वशीभूत होकर गुणवती रसोई ले आयी। गन्ध, फूल और दीप सैंजो दिये गये। माँ ने मीठा भोजन दिया, गीले पत्तों के भाजन में परोसा गया दही मिश्रित भात, घृत से भरे हुए माण्ड और पूरण और भी नाना खाद्य विशेषों से युक्त सरस भोजन, भावी भूपति ने किया। सिर में लता-दल की मालाओं को बाँधे हुए ग्वालों को स्वर्ण के दण्ड दिये गये और सूक्ष्म कोमल दिव्य वस्त्र तथा रवि-किरणों से प्रशस्त भूषण भी दिये गये। फिर तीन प्रदक्षिणाएँ देते हुए पुत्र के ऊपर वे दूध की धारा छोड़ते हैं। घत्ता-माँ ने, पौरुष-रत्न की निधि, अपने गुणगणों से इन्द्र को विस्मित करनेवाले केशव का अभिषेक किया, मानो कुलगृह की लक्ष्मी ने स्वयं उनका अभिषेक किया हो। (15) माता के दूध से अभिषिक्त नारायण नन्दनन्दन कृष्ण ऐसे दिखाई दे रहे थे, मानो तमालपत्र के समान नीला नवमेघ चन्द्रमा की किरणों से लिपट गया हो, मानो कामधेनु स्वयं अवतरित हुई हो। झरते हुए स्तनों 4. APS इरतिउ। 5. B कंसु। 6. Pणमंतई। 70 P°दीवय': दोघाइ। B. A मंडिय"19. ABS घियकाह। 10. A भाऊभूणा; BK भाइमूणाहे। 11. B सुम्हट; P$ सण्हई। 12, Pउप्परे। 13. Bखीर। 14. S"बिहाविय | 15. 5 वासदु। 16.5 कैसवु। (18) I. Bण पंदु। 2. Bणामि।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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