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________________ 85.13.2] 5 10 महाकइपृष्फयंतविरब महापुराणु फणिणरसुरहं मि अइअइसइयउ "हरि मुहि चुंबिवि कडियलि लइयउ। किं खरेण किं तुराएं दद्वछ मायइ सयलु अंगु परिमट्ठउं। अण्णहिं दिणि रच्छहि कीलंतहु वालहु 'बालकील दरिसंतहु। दुछ अरिदेउ विसवेसें ।आइउ महुरावइआएसें। सिंगजुयलसंचालियगिरिसिलु" 'खरखुरग्गउक्खयधरणीयलु। सरवरवेल्लिजालविलुलियगलु कमणिवायकंपावियजलथलु। गज्जियरवपूरियभुवणंतरू हरवरवसहणिवहकयभयजरु'" । ससहरकिरणणियरपंडुरयरु 'गुरुकलाससिह रसोहाहरु। किर झड णिविड" देइ आवेप्पिणु ता कण्हें भुयदंडे। लेप्पिणु। मोडिड कंदु कड त्ति विसिंदहु को पडिमल्लु तिजगि गोविंदहु । 'घत्ता-ओहमियधवलु हरि गोउलि धवलहि गिज्जइ। धवलाण वि धवलु कुलधवलु केण ण थुणिज्जइ ॥12॥ ( 13 ) दुवई-ता कलयलु सुति गोवालहं पणयजलोहवाहिणी। सुयविलसिउ मुणति णिग्गय णियगेहहु णंदरोहिणी ॥छ। लिया। माँ ने उसका समूचा शरीर छुआ कि कहीं गधे या घोड़े ने काटा तो नहीं। एक दूसरे दिन, जब बालक गली में खेलता हुआ अपनी बालक्रीड़ा का प्रदर्शन कर रहा था कि मथुरापति के आदेश से दुष्ट अरिष्ट देव बैल के रूप में आया। वह अपने दोनों सींगों से शिलातल को संचालित कर रहा था। तीखे खुरों से धरणी-तल को उखाड़ रहा था, उसका गला सरोवरों के लताजाल से लदा हुआ था। पैरों की चपेट से धरती को कँपा रहा था। गर्जना के शब्द से भुवनान्तर को गँजा रहा था, शिव के नन्दी बैल को भय उत्पन्न कर रहा था, जो चन्द्रमा के किरणसमूह के समान सफेद था, महान् कैलाश-शिखर की शोभा को धारण कर रहा था। (ऐसा पह) शीघ्र आकर जैसे ही आक्रमण करना चाहता था कि कृष्ण ने अपने बाहुदण्ड पर लेकर, उस वृषभेन्द्र का, कड़-कड़ करके गला मोड़ दिया। गोविन्द के समान त्रिलोक में प्रतिमल्ल कौन धत्ता-धवल ल को पराजित करनेवाले हरि का, गोकुल में धवल गीतों में गान किया जाता है। धवलों में धवल (श्रेष्ठों में श्रेष्ठ) धवल कुल की गान-स्तुति किसके द्वारा नहीं की जाती : (13) तब, प्रणयरूपी जलसमूह की वाहिनी (नदी) नन्द की गृहिणी यशोदा गोपाल बालकों की कल-कल ध्वनि सुनती हुई और अपने पुत्र की करतूत जानती हुई अपने घर से निकली। माँ बोली-"आपत्ति में फंसा हुआ In.हरिपुह विनि।।।. AP बाललील। 12. आपर। 13.AP संचालियाविरलिल । 14.A सुरागखपत्रावरणीयल । [5. A गज्जव । 15.A ट्यवर। 17. पुरु केलास.AIS. गिरिकेलास | 18. महरि। 19. B सोहावरु। 10. ई। 21. PS दंडहिं। 22.A कंधु। 29. Pटरे। 24. B गोजल 1 25. Bधवलिहिं।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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