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________________ 92 ] महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु [85.11.19 20 25 गहिरहिंसिरो जीरहिसिरो। चकियाणणो णाइ" दुजणो। हिलिहिलंतओ महि दतंतओ। कालचोइओ एंतु जोइओ। लच्छिधारिणा चित्तहारिणा। घुसिणपिंजरे बाहुपंजरे। छुहिवि पीलिओ गयणि” चालिओ। मोडिओ गलो पत्तपच्छलो। रणि हओ हओ णिग्गओ गओ। घत्ता-ता जसोय भणिय णइपुलिणइ" पाणियहारिहिं। णंदणु कहिं जियइ जायउ तुम्हारिसणारिहिं ||1|| (12) दुवई-मरुहयमहिरुहेहिं पहि चप्पिउ गद्दह तुरय चूरिओ। अवरु उदूहलम्मि' पई बद्धउ जाणहुं बालु मारिओ ॥ छ । धाइय' तासु जसोय विसंठुलं करयलजुयलपिहियचलथणयल । बदउ उक्खलु' मेरिलवि" घल्लिउ महु जीविएण' जियहि सिसु बोल्लिउ । और जीवों को मारता हुआ। दुर्जन की तरह वक्रमुख, हिलता-डुलता हुआ, धरती को दलता हुआ और काल से प्रेरित आते हुए उसे, चित्त चुरानेवाली लक्ष्मी के धारक कृष्ण ने देखा। केशर से पीले बाहुपंजर से छूकर और पीड़ित कर उसे आकाश में घुमा दिया। गला मोड़कर, पृष्टभाग से मिला दिया। युद्ध में आहत अश्व निकलकर भाग गया। पत्ता-उस समय नदी-तट पर पनहारिनों ने यशोदा से कहा कि तुम जैसी स्त्रियों से जन्मा बालक कैसे जीवित रह सकता है ? ( 12 ) पवन से आन्दोलित वृक्ष-युगल से पथ में चाँपा गया, गर्दभ और अश्व के द्वारा पीड़ित और तुम्हारे द्वारा ओखली से बाँधा गया बालक, हम समझती हैं, मारा गया। इससे यशोदा अपने दोनों चंचल स्तनों को हाथों से ढकती हुई अस्त-व्यस्त होकर दौड़ी। बँधी हुई ओखल खोल दी। और बोली, “हे पुत्र ! तुम मेरे जीवन से जिओ, नागों, मनुष्यों और देवों से भी अतिशय महान् हरि को मुख में चूमकर उसे कटितल पर उठा 11. B दक्किया। 15. Bणाय। 16. A सो पराइओ। 17.AS गयण। 18. R"पुस्लणए। (12) I. BAIS. उदूखणम्मि; P उदूखलम्मि। 2. । धाथिय। 3. A ताम: B तामु। 4. । विसंगुल; P विसंयुल: 5 दुसयुल। 5. B जुवल । 6. B "धणयल। 7.5 ओखल। 8. P मल्लवि19, BP जीएण।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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