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85.11.18]]
महाकइपुष्फयंतबिरयड महापुराणु
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दुवई-सिरिरमणीविलासकीलाघरि' वच्छ्यले घडतइं। ___अरिवरसिराई विहिलुक्कई दसदिसिवहिं पड़तइं ॥ ॥ ताइ इच्छए
सो पइिच्छए। पंजलीयरो
कीलणायरो। गयणसंचुए
णाइ झिंदुए। ता महारवा
तिब्बभेरवा। पुंछलालिरी'
कण्णचालिरी। घाइया खरी
विभिओ हरी। उल्ललंतिया
णहि मिलतिया। वेयवतिया
दीहदतिया। उवरि एंतिया
घाउ देतिया। णंदवासिणा
जायवेसिणा। आहया उरे
धारिया खुरे। मेहसंगहे
भामिया णहे। सुठुर चाविरी
कंसकिंकरी। तीइ ताडिओ
महिहि पाडिओ। तालरुक्खओ
पुणु विवक्खओ। जगि ण माइओ तुरउ धाइओ।
लक्ष्मीरूपी रमणी के विलास के क्रीडाघर उनके वक्ष-स्थल पर वे फल इस प्रकार गिरते हैं, मानो विधाता द्वारा काटे गये शत्रुवरों के सिर दसों दिशापथों में गिर रहे हों। ___वह फेंकती है, वह झेलते हैं; जैसे वह अंजली बाँधकर आकाश से गिरती हुई तीव्र गेंद में क्रीडारत हों। तब महाशब्द करनेवाली तीव्र और भयंकर पूँछ हिलाती हुई, कान चलाती हुई एक गधी दौड़ी; कृष्ण आश्चर्य में पड़ गये। उछलती हुई, आकाश में मिलती हुई, वेगवती लम्बे दाँतोंवाली, ऊपर आती हुई, आघात पहुँचाती हुई, उसके वक्ष पर नन्दवासी यादवेश ने आहत किया और खुरों को पकड़ कर मेघों के संग्रह से युक्त आकाश में घुमा दिया। खूब चर्वण करनेवाली कंस की दासी, उनसे ताड़ित होकर धरती पर गिर पड़ी। तब तालवृक्ष पराजित हो गया। तब जग में नहीं समाता हुआ अश्व दौड़ा। गम्भीर रूप से हिनहिनाता हुआ
(11) 1. Aबिलासि। 2. A "वरुपईतई। पु. P इन्दिछए। 4. P पडियच्छिए। 5. झेडुए। 6. A भिच्चभइरवा; B तिब्ब भरवा । 7. पुन्छ । ४.5 विम्हिओ। 9. B मिलितिया। 10. BP बोतेया। |I. B दतिया। 12,AP सुद्धचाबिरी। 13. P केंकरी।