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महाकपुष्फयतविरयउ महापुराणु
185.10.20
तमुदूहलयं
इंदाइणिए
पियचारिणिए । दिहिचोरेण
दरडोरेणं पबलबलालो
बद्धो बालो। उदूखलए
णिहियउ णिलए। सीयसमीरं
तीरिणितीरं। सिसुकयछाया
विगया माया। ता सो दिव्यो
अव्यो अब्यो। इय सतो
24परियडेतो।
पणियपुलर्य। णवकयकण्हहुने जयजसतण्हहु । जाणियमग्गो
पच्छई लग्गो। अरिविज्जाए
गयणयराए। ता परिमुक्कं
णियडे0 दुक्कं। मारुवचवलं
तरुवरजुयलं। अंगे घुलिये
भुयपडिखलियं। कीलतेणं
विहसतेणं। बलवंतेणं
सिरिकतेण । पत्ता-होइवि तालतरु रंगतहु पहि तडितरलई।
रक्खसिर केसवह सिरि घिवइ कढिणतालहलई ॥10॥
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एक-दूसरे दिन सबेरे, प्रिय के साथ जाती हुई यशोदा ने धैर्य को चुरानेवाली मजबूत रस्सी से, प्रबल बलवाले उस बालक को ओखली से बाँध दिया और घर में डाल दिया। वह माँ शीतल समीरवाले यमुनातीर पर, शिशु का उत्सव मनाने के लिए चली गयी। तब वह दिव्य (बालक) 'अम्मा, अम्मा' कहता हुआ और रोमांच उत्पन्न करनेवाली उस ओखली को खींचता हुआ, मार्ग जानता हुआ उसके पीछे लग गया। तब आकाशचारी शत्रुविद्या के द्वारा मुक्त पवन से चंचल वृक्षयुगल, नवीन पुण्य से युक्त और जय के यश के आकांक्षी उनके निकट पहुँचे। क्रीड़ा करते हुए, हँसते हुए बलवान श्रीकान्त ने शरीर पर गिरते हुए उन्हें (वृक्षयुगल को) बाहुओं से प्रतिस्खलित कर दिया। __घत्ता-तब वह राक्षसी तालवृक्ष बनकर, पथ में खेलते हुए केशव के सिर पर बिजली की तरह शब्द करती हुई कठोर तालफल गिराती है।
18. AP णंदाणीए। 19. AP पियघरणीए। 20. A दहिचोरेणं। 21. A ददोरेणं। 22. Pउक्ख लए: S उहुक्खलए। 23. P णिहियो: 5 णिहिओ। 24. AP परियंदतो B परिअइंतोः परिपतो। 25. B तमहल'। 26. A पयलियः B पयणव | 27. A यणवयतण्हो; Pधणपवतहो। 28, AP सहसा कण्हो। 29, AP पष्ठा लग्गो। 30. AP साहगुरुवक। 31. P सिरकतेणं। 32. B रक्खसे। 33. PS 'ताडहलई।