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85.10.19]
महमकइपुष्फबपर महापुराण
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(10)
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दुवई-यरकाहलियबसरवबहिरिए' पाइयगेयरससए।
रोमंथंतथक्कगोमहिसिउलसोहियपएसए' ॥ छ । अण्णहिं पुणु दिणि तहिं णियपंगणि। जणमणहारी
रमइ मुरारी। घोट्टइ खीर
लोट्टइ गीरं। भंजइ कुंभं
पेल्लइ डिभं। छंडई' महियं
चक्खइ दहियं। कहइ चिच्चि
धरइ चलच्चि । इच्छइ केलिं
करइ दुवालि। तहिं अवसरए
कीलाणिरए। कवजणराहे
पंकयणाहे। रिउणा सिट्टा
देवी दुट्ठा । अवरा घोरा
सयडायारा। पत्ता गो९
गोवइइ8।। चक्कचलंगी
दलियभुयंगी। उप्परि एंती
पलउ करती। दिवा तेणं
महुमहणेणं । पाएं पहया
णासिवि' विगया। रविकिरणावहि
अवरदिणावहि"।
(10) जो श्रेष्ठ काहल और बाँसुरी के शब्दों से वधिर है, जिसमें सैकड़ों रसपूर्ण गीत गाये जा रहे हैं, जो जुगाली कर बैठी हुई गाय-भैंसों के कुल से शोभित है, ऐसे अपने प्रांगण में एक दिन जनमन के लिए सुन्दर मुरारी क्रीड़ा करते हैं। दूध गिराते हैं, पानी लुढ़का देते हैं, घड़ा फोड़ देते हैं। दही चखते हैं, आग निकालते हैं, उसको ज्वाला पकड़ते हैं, क्रीड़ा की इच्छा करते हैं, गोलाकार बनाते हैं। उस अवसर पर, लोगों की शोभा बढ़ानेवाले कमलनाथ श्रीकृष्ण जब खेलने की इच्छा करते हैं, तब शत्रु द्वारा निर्मित एक और भयंकर दुष्ट देची शकट के आकार में, नन्द की अत्यन्त प्रिय गोठ पर पहुँची। चक्कों के समान चलते हुए अंगोंवाली, साँपों को कुचलती हुई, ऊपर आती हुई, प्रलय मचाती हुई उसे मधुमथन कृष्ण ने देखा। पैर से आहत किचा, वह नष्ट होकर सूर्य की किरणों के मार्ग से भाग खड़ी हुई।
(10) 1. A"काहलेच; 15 काहिलय 12.AP गाहयगोयराए। 9. B रोमंधक्कबहुलगो। 4. पहिलीउल पहिसिडले । 5. A अग्णहिं मि दिणे; Pअपि दिणे। HAP प्णियभवगे। 7. PS | R. A वलाच्च। 9. B केली। 10. B दुवाली; PS दुबालि। 1.गोपा। 12. BS यंती। 1. महमहणेण। 14. पापण हया। 5. Pणासेवि गया। 16. P"किरणारहे। 17. P अवरम्मि अहे।