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महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु अज्जु जि मारमि पलउ समारमि। इच चिंततें
रोसु वहतें। माणमहंतें
भिउडि करतें। लच्छोकतें
देवि अपंतें। पीडिय.
"मुहिक हामिय: दिट्टिइ.५ तज्जिय थामें णिज्जिय। अणु वि ण मुक्की णहहिं विलुक्की। खलहि रसंतहि
सुण्णु" हसंतहि। भीमें बालें
कयकल्लोलें। लोहिडं सोसिउं
पलु आकरिसिउं। दाणवसारी
भणइ भडारी। हिवरुहिरासव
मुइ मुइ केसव। गंदाणंदण
मेल्लि जणइण। कंसु ण सेवमि रोसु" ण दावमि। जहिं तुहं अचाहि
कील समिच्छहि। तहिं णउ 'पइसमि छ लु ण गवेसमि। यत्ता-इय रुयति कलुणु कह कह व "गोविंदें मुक्की
गय देविच कहिं मि पुणु णंदणिवासि" ण ढुक्की ॥७॥
करनेवाली दुष्ट राक्षसी है। इसे मैं आज ही मारता हूँ, प्रलय प्रारम्भ करता हूँ।
यह सोचते हुए और क्रोध करते हुए, मान से महान् भौहें चढ़ाते हुए लक्ष्मीकान्त अनन्त ने उस देवी को दांतों से पीड़ित किया, मुट्ठी से प्रताड़ित किया, दृष्टि से डाँटा और शक्ति से जीत लिया । अणु बराबर भी उसे नहीं छोड़ा। वह आकाश में छिप गयी। क्रीड़ा करते हुए उस भीम बालक ने दुष्ट बोलती हुई, शून्य में हँसती हुई उसका मुख सोख लिया, मांस खींच लिया। तब दानवीश्रेष्ठ वह बेचारी कहती है, "हे केशव ! हृदय के रुधिरासव को छोड़ो, नन्द को आनन्द देनेवाले हे जनार्दन ! मुझे छोड़ दो, मैं कंस की सेवा नहीं करूंगी, क्रोध नहीं दिखाऊँगी, जहाँ तुम रहते हो और क्रीड़ा करते हो, वहाँ मैं प्रवेश नहीं करूँगी, छल नहीं करूंगी। __घना--इस प्रकार करुण रोती हुई उसे गोविन्द ने बड़ी कठिनाई से छोड़ा। वह देवी अन्यत्र चली गयी। और फिर कभी नन्द के निवास स्थान पर नहीं आयी।
1. Sमार्गच, माठि . Pमाग मंत। 2. B दंतिस्।ि 11. BP हिहि मुहिए। 12. B दिद्रिय। 13. AP खण वि। 14. Pणीहें। 15. AP तहि असहि । 16.5दोरा। 1.5 गांधि। H. Sनजसपासधि।।9. APS । 20. APS गया।