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85.9.20]
महाकपुष्कयंतविरयउ महापुराणु
(9)
दुवई -- कहियं देवियाहिं जो गंदणिहेलगि यसइ बालओ ।।
( 9 ) मायाजोइणि;
सो पई णिव भंति के दिवसु वि मारइ मच्छरालओ । छ।। ता तहिं अवसरि मायासें ।
धाइय जोइणि ।
गय तं गोउलु ।
णवमहु कहहु ।
झत्ति पिसण्णी ।
जाणिइ अरिवरि
कंसाएसें
बल मायाविणि
चच्छरवाउलु जयसिरितण्डु
पासि पवण्णी
पभइ पूयण
पियगरुडद्धय
दुद्धरसिल्लउ
तं आयण्णिवि
चुयपयiदुरि
हरिणा णिहियचं
णं सरिमंडलु सुरहियपरिमलु सिकल सुपरि कडुएं खीरें
जणणि ण मेरी जीवियहारिणि
हे? महुसूयण ।
आउ धणद्धय ।
पियहि धणुल्लउ ।
चंगउं मणिवि ।
ओहरि ।
वयणु
* राहुं गहिय ं ।
सोहइ धणयतु ।
णं पीलुप्लु । विभिउ मणि हरि ।
जाणिय वीरें।
विप्पियगारी ।
रक्खसि
इरिणि ।
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तब देवियों ने कहा - " नन्द के घर में जो बालक रहता है, हे राजन् ! इसमें सन्देह नहीं, एक दिन ईर्ष्या से भरा हुआ वह तुम्हें मारेगा।" शत्रुवर को जान लेने पर उस अवसर पर कंस के आदेश से मायावी रूप में बलयुक्त योगिनी दौड़ी और बछड़ों स्वर से संकुल गोकुल में पहुँची। वह विजय और लक्ष्मी के आकांक्षी नौवें नारायण कृष्ण के पास गयी और पास में बैठ गयी। पूतना कहती है- "हे मधुसूदन ! हे गरुड़ध्वज ! हे पुत्र ! दूध से रिसते मेरे स्तन को पी लो।" यह सुनकर और अच्छा समझकर, गिरते हुए दूध से सफेद स्तन में उन्होंने मुख दिया, मानो राहु द्वारा ग्रस्त चन्द्रमण्डल हो । वह स्तनमण्डल ऐसा शोभित हो रहा था, मानो सुरभित परिमलवाला नीलोत्पल हो जो श्वेत कलश पर रखा हुआ है। अपने मन में विस्मित हुए हरि ने कडुए दूध से जान लिया कि यह मेरी माँ नहीं है, यह तो कोई बुरा करनेवाली, जीवन का अपहरण
Kणित 2. AP अहो 3. P पनोहरे । 4. P राहु व 5.5 विभिउ । 6. P वयरिणि; S बेरिणि 7 A adds alter 20 b क्रूरवियारिणि, adds it in second hand.