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________________ 86 | महाकड्पुप्फयंतविरयउ महापुराणु [85.8.] दुवई-भणु भणु चंदवयण जइ जाणसि' जीवियमरणकारणं । मह कह विहिवसेण इह होही असुहसुहावयारणं ॥ छ ॥ किं उप्पाय जाय कि होसइ तं मिसुणावे गिपारा धोस । तुज्झु णराहिब बलसंपुण्णउ' गरुयउ' को वि सत्तु उप्पण्णउ । ता चिंतवइ कंसु हयछायउ हउ जाणमि' असच्चु रिसि जायउ। हउं जाणमि सससुय विणिवाइय हर्ड आणमि महुँ अस्थि ण दाइय। हउं जाणमि महिवइ अजरामरु हउं जाणमि अम्हह' किर को परु। हउं जाणमि पुरि महु ण णासइ णवर कालु के किर ण गवेसइ । इय चिंतंतु जाम विदाणउ तिलु तिलु झिज्जइ हियवइ राणउ। सव्वाहरणविहूसियगत्तउ ता तहिं देवियाउ संपत्तउ। ताउ भणति भणहि किं किज्जड को रुधिवि बंधिवि आणिज्जड।। को" मारिज्जइ को वसि किज्जइ किं वसि करिवि वसुह तुह दिज्जइ। हरि बल मुएवि कहसु को जिप्पइ को लोहिवि दलवट्टिवि धिप्पइ। घत्ता-भणइ णराहिवइ रिउ कहिं मि एत्थु मह अच्छा। सां तुम्हई" हणहु तिह जिह' जमणयरहु गच्छई ॥8॥ 10 15 "हे चन्द्रमुखि ! बताओ, यदि तुम जीवन और मृत्यु का कारण जानते हो। बताओ, मुझे शुभ और अशुभ की अवतारणा किस प्रकार होगी ? यह क्या उत्पात हो रहा है ? क्या होगा ?" यह सुनकर ज्योतिषी कहता है-'हे नराधिप ! तुम्हारा बल से परिपूर्ण कोई महान् शत्रु उत्पन्न हो गया है।" तब क्षीण-कान्ति कंस विचार करता है-'मैं समझता था कि मुनि का कहा हुआ झूठ हो गया। मैं जानता था कि बहिन के पुत्र मारे गये। मैं जानता था कि मेरा अब कोई दुश्मन नहीं है। मैं जानता था कि राजा अजर-अमर है। मैं जानता था कि मेरा बैरी कौन हो सकता है। मैं जानता था कि मेरी नगरी नष्ट नहीं होगी। लेकिन नहीं, काल किसे नहीं खोजता?' यह सोचते हुए जब वह दुखी हो उठा, और अपने हृदय में तिल-तिल जलने लगा, तब सब प्रकार के आभरणों से अलंकृत देहवाली देवियाँ वहा आयीं। वे बोली, "बताओ हम क्या करें, किसे रोककर बाँधकर लाएँ, किसे मारा जाये, किसे वश में किया जाए ? क्या धरती वश में कर तुम्हें दी जाए ? बलभद्र और नारायण को छोड़कर, कहो किसे जीता जाए ? किसे लुण्ठित और चकनाचूर किया जाए ? किसे पकड़ा जाये ? छत्ता-राजा कंस कहता है-“यहीं कहीं मेरा शत्रु है, तुम लोग उसे इस प्रकार मार डालो कि जिससे यह बमनगरी के लिए चला जाए।" (8) 1. A जाणस। 2. महु कइया भविस्सिही णिन्छिक असुझरणायचारण ! मह कश्या भविस्सिहीदि पिच्छर असुहरणावयारण; 3. ASणैमित्तिक । 1. AR "संपणाउ।5. गरुय 51646415 जाणवि throughout. 7. AP अम्हहं को किर परु। 3. ABPS कि किर। 9.Aछिज्जई 10. A ता चति विउ मिगणेत।।1. A सरहि वि दिनद को मारिजइ सरेहिं विहिज्जा को मारिज्जई। ।५. AP रिङ एथ् कहिं मि,5रि कहि विएत्यु। FA तुम्हह हणह। 11. Sजिय।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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