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85.7.14 |
महाकइपुप्फयंतवियर महापुराणु
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दुवई - उ भुजति गीव कयसंसय णिज्जियणीलमेहई । केस कायकतिपविलित्तई दहियई अंजणाहई । छ । । घयभायणि' अवलोइवि' भावइ पियपडिबिंबु विठु बोल्लावइ । हसइ पंदु लेप्पिणु अवरुडइ तहु उरयलु परमेसरु मंडई | अम्माहीरएण तं दिज्जइ निधइयउ परियंदिज्जइ । हल्लस हल्ल जो जो भण्णइ तुज्झु पसाएं होस उष्णइ । हलहरभायर वेरिअगोयर तुहुं सुहुं सुयहि देव दामोयर । तहु घोरं हयतु गज्जइ सुत्तविरुद्ध ण केण लइज्जइ । पुहणाहु किर कासु ण वल्लहु अच्छउ णरु सुरहं मि सो दुल्लहु । वियलियपयकिलेससंतायें पसरतें तहु पुण्णपहावें । महुहारि सांग" कंदइ " । सिविणंतरि भग्गइं णिवछत्तई । विणएण नियच्छिउ । णाम आउच्छिउ ॥7॥
दहु के मोडलु ांत" महि कंपइ पडंति गक्खत्तई
धत्ता - णियवि 14 जलति दिस कंसें जो सत्थणिहि दिउ वरुणु
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7. AP Als. सुतु विउ B उड्छु विरुद्ध 8. B केण वि
14. Pगिएव । 15 A णारं ।
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कृष्ण की देह की कान्ति से विलिप्त, मेघों को भी जीतनेवाले, अंजन के समान काले दही में संशय करते हुए गीप उसे नहीं खाते। घी के बर्तन में अपना प्रतिबिम्ब देखकर कृष्ण को अच्छा लगता है, विष्णु उसे बुलाते हैं। यह देखकर नन्द हँसते हैं और लेकर बालक का आलिंगन करते हैं। उनके वक्षस्थल पर कृष्ण शोभित हैं। 'जो-जो' की लोरी सुनकर वह सोते हैं और नींद से उठने पर हाथों-हाथ लिये जाते हैं। तुम्हारे प्रसाद से उन्नति होगी। हे शत्रुओं के लिए अगोचर हलधर के भाई दामोदर आज सुख से सोएँ । उनके घुर घुर करने पर आकाश गरज उठता है । सोकर उठने पर वह किस-किसके द्वारा नहीं लिये जाते ! ( अर्थात् उसे सभी लेते हैं) पृथ्वीनाथ भला किसके लिए प्रिय नहीं हैं ! मनुष्य की बात छोड़िए वह देवताओं के लिए भी प्रिय हैं। प्रजा के क्लेश और सन्ताप को नष्ट करनेवाले उनका पुण्य प्रभाव फैलने पर नन्द के गोकुल में आनन्द मनाया जाता है; जबकि मथुरा की स्त्रियाँ मरघट में विलाप करती हैं, धरती कौंपने लगती है, नक्षत्र टूटने लगते हैं। स्वप्न में राजा कंस का नृपछत्र भंग हो जाता है ।
घत्ता - दिशाओं को जलते हुए देखकर कंस ने विनयपूर्वक, ज्योतिषशास्त्र के निधि वरुण नाम के द्विज से पूछा
(7) 1. B भाइणि 2. अगलोयवि: S अबलोवइ । 3. AP णंदिज्जइ । 4. AP परिअंदिज्ज। 5. AP बइरियगोयर 5 वइरिअगोयर 6 A गयलु । . P सुदुल्लहु 10. P गंदउ 11 P मसालाहि 12. A कंदज। 13. ABP निवछत्तई ।