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महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु
[85.6.3
रंगतेण रमंतरमंतें
मंथउ धरिउ भमंतु अणतें। मंदीरउ तोडिवि आवट्टिउं अद्धविरोलिउ दहिउं पलोट्टिउँ। का वि गोवि गोविंदहु लग्गी एण महारी मंथणि भग्गी। एयहि मोल्नु' देउ आलिंगणु णं तो मा मेल्लहु मे पंगणु। काहि वि गोविहि पंडुरु' चेलउं हरितणुतेएं जायउं कालऊं। मूढ' जलेण काई पक्खालइ णियजडत्तु सहियहिं' दक्खालइ। थण्णरहिच्छिरु छायावतउ "मायहि संमुहू परिधावंतउ। । महिससिलंवउ' हरिणा" धरियउ 'ण करणिबंधणाउ णीसरियउ। दोहउ दोहणहत्थु समीरइ मुइ मुइ माहव कीलिउं पूरइ। कत्थइ अंगणभवणालुद्धउ "बालबच्छु बालेण णिरुद्धउ। गुंजाझेंदुयरइयपओए
मेल्लाविउ दुक्खेहिं 1 जसोएं। कत्थइ लोणियपिंडु णिरिक्खिउ कण्हें कंसहु णं जसु भक्खिउं। घत्ता-पसरियकरयलेहि सइंतिहिं 2"सुइसुहकारिणिहिं।।
भांद्दइ णियाई थिए घरयम्मु ण लग्गइ णारिहिं ॥6॥
चलते-चलते घूमती हुई मथानी पकड़ ली और लोहे की साँकल को तोड़कर फेंक दिया। अधबिलोया दही उलट दिया। कोई गोपी गोविन्द के पीछे लग गयी कि इसने मेरी मथानी तोड़ दी है। इसका मूल्य ये मुझे आलिंगन दें, या फिर मेरे आँगन को न छोड़ें। किसी गोपी का सफेद वस्त्र कृष्ण के शरीर की कान्ति से काला हो गया। वह मूर्ख जल से उसे धोती है और इस प्रकार अपनी मूर्खता सखियों को बताती है। दूध के स्वाद की इच्छा रखनेवाले भूखे, माँ के सम्मुख दौड़ते हुए भैंस के बच्चे को कृष्ण ने पकड़ लिया। यह उनकी हाथ की पकड़ से नहीं निकल पाता है। दुहनेवाला दुहने का पान हाथ में लिये हुए प्रेरित करता है। (कृष्ण से कहता है)-खेल पूरा हो गया, हे माधव इसे छोड़ो। कहीं आँगन में भवन के लोभी छोटे से बछड़े को बालक ने रोक लिया। तब यशोदा ने घुघची की गेंद के प्रयोग द्वारा बड़ी कठिनाई से उसे छुड़ाया। वहीं कृष्ण ने नवनीत का पिण्ड रखा देखा और उन्होंने कंस के यश के समान उसे खा लिया। ___घत्ता-कानों को सुन्दर लगनेवाले मधुर स्वरों में गाती हुईं और हाथ फैलाई हुई स्त्रियों का (कृष्ण के निकट रहने पर) गृहकार्य में मन नहीं लगता।
2.जाबाद। 3. A भाँपणि S प्रत्याग : 1. " मुल्ल। 5.AA पेलार घरपंगणुः महु पंगणुः 5 मेल्लऊ ये पंगणु। 6. पंडरु। 7.A मूद्धि। . B का चि। 9. AS राहियह सहियहुं। 10. मायए। 11. ABPS महिसि । 12. BP "सिलिंबध। 13. A सिसुणा। 14. Pण करबंधणार। 15. " त्रवन पथ । HAI "झिंडुज। 17. A'S Tओपए। 18. APS जसोयाए। 19. A 'करयलई सरहिं। 20. P हिसुह121. APS 'कारिहि ।