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85.6.2
महाकइपुप्फयंतविरयट महापुराणु
अंगुलियाउ ताहि संकप्पिवि गंधफुल्लचरुयहिं मणमोहें दुग्ग विझवासिणि तहिं हूई एतहि केस
माणियभोयहि
णं मंगलणिहिकल मणोहरु तातो
दामोयरु दुत्थियचिंतामणि " अरिणरमहिहरिंदसोदामणि पविउलभुवर्णभोरुहदिणमणि 3 fatus णाहु पसारियहत्वहिं
'लक्कड लोह" विरइउ' थप्पिवि । पुणु तिसूलु पुज्जिउ सवरोहें। मेसहं महिसहं णं जमदूई ।
दें "जाइवि दिष्णु जसोयहि । सुहिकरकमलहं णं इंदिदिरु । छज्जइ "माहउ माहउ जेहछ । समरगहीरवीरचूडामणि । जणवसियरणकरणविज्जामणि । विवि" पुत्तु हरिसिय गोसामिणि । गंदगोवगोवालिणिसत्थहिं ।
धत्ता - गाइउ "कलरवहिं आलाविउ ललियालावहिं । ass महुमहणु" कइगंधु जेम रसभावहिं ॥5॥ (6)
दुवई - धूलीधूसरेण 'वरमुक्कसरेण तिष्णा मुरारिणा । कीलारसवसेण गोवालयगोबीहिययहारिणा
छ ॥
5. 5 लक्कुड़। . BP "लोहें। 7. विषय ४ AP गंधधूयचरू: BS गंधपुष्पच after 11 अणुदिणु परिणिवसद्द सुहियणमणि। 13. A भवभो। 14. P णिएवि (6)1. A दरमुक्क' 5 बरमुक्कु ।
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गयीं। शबर समूह ने लकड़ी और लोहे से निर्मित उसकी अंगुलियों को संकल्पित और स्थापित कर उनकी तथा त्रिशूल की भी गन्ध-पुष्प और नैवेद्य से पूजा की। वहीं विन्ध्यवासिनी दुर्गा उत्पन्न हुई जो मानो मेढों और भैंसों के लिए यमदूती थी । वहाँ पर नन्द ने केशव (कृष्ण) को भोगों के लिए मनानेवाली यशोदा को दे दिया, मानो वह मंगलनिधियों का सुन्दर कलश हो, मानो सुधियों के कर-कमलों पर भ्रमर हो, मानो स्तनरूपी घड़ों पर तमालपत्र हो । माधव (कृष्ण) माधव (विष्णु) के समान शोभित हैं। दामोदर दुस्थितों के लिए चिन्तामणि हैं, युद्ध में गम्भीर श्रेष्ठ योद्धा हैं, शत्रुरूपी महीश्वरों के लिए सौदामिनी (बिजली) हैं, लोगों को वश में करने के लिए विद्यामणि हैं और विशाल विश्वरूपी कमल के लिए सूर्य हैं। पुत्र को देखकर माँ हर्षित हो उठी । नन्दगोप और ग्वालिनों का समूह हाथ फैलाकर स्वामी को ग्रहण करता है।
घत्ता- कलरवों में गाये गये सुन्दर आलापों में आलापित किये गये मधुमथन (कृष्ण) उसी प्रकार बढ़ने लगते हैं, जिस प्रकार रसभावों से कविग्रन्थ ।
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धूल-धूसरित श्रेष्ठ मुक्त स्वरवाले तथा गोप-गोपियों के हृदय को चुरानेवाले मुरारी ने क्रीड़ा-रस के बहाने
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10. P जायवि। 11. 5 माह माहवु 12. B adds 15. APS घेप्पड़ 16. BP कलरवेहिं 17. A महमहणु।