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महाकइपुष्फयंतबिरयर महापुराणु तलहत्थें सरलहि कोमलियहि चप्पिवि णासिय दिल्लिदिलियहि । रूवु' विणासिवि' सुटु रउद्दे भूमिमवणि घल्लाविय खुद्दे। सरसाहारगासपियवायड
तहिं मि धीय वडारिय मायइ। हूई णवजोब्बणसिंगारें
भज्जइ णं टस ति धणभारें। सुव्वयखंति सधम्म समीरइ आउ जाहुं सुंदरि' तउ कीरइ। णासाभंगें रू" विणट्ठउं
"जाणिवि सा दप्पणयलि दिछउँ । णिग्गय गय वयधारिणि होइदि' थिय काणणि ससरीरु पमाइवि। धोयई धवलंबरई णियथी जिणु झायंति पलंबियहत्थी। कुसुमहिं मालिय 'चडहिं मि पासहिं पुज्जिय णाहलसमरसहासहि।।
घत्तागय ते णियभवणु "एक्काल्ली कण्ण णिरिक्खिय। ___ अरिहु सरंति मणि वणि भीमें बम्बें भक्खिय ॥14॥
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दुवई-गय सा णियकएण सुरवरघर' अमलिणमणिपवित्तयं ।
उपरिवं कह पि अलियल्लहि तीए करंगुलित्तयं ॥ छ । तं पुजिउं णाहलकुलवाले' कुहियां सडियउं जंतें कालें ।
बालिका की नाक अपने हाथ से चपटी कर दी। उस भयंकर क्षुद्र ने उसका रूप बुरी तरह नष्ट कर उसे तलघर में डलवा दिया, परन्तु माता ने वहाँ भी सरस आहार के कौर और मीठी वाणी से उस कन्या को बड़ा कर लिया। नवयौवन की शोभावाले स्तनों से वह तिलभर भी भग्न नहीं हुई। आर्या सुव्रता उसे स्वधर्म की प्रेरणा देती है कि आओ चलें, हे सुन्दरी ! तप किया जाय। यह जानकर कि नाक के नष्ट हो जाने से उसका रूप चौपट हो गया है, बालिका ने दर्पण देखा। वह व्रतधारिणी होकर, निकलकर चली गयी। बन में कायोत्सर्ग से स्थित हो गयी। धुले हुए वस्त्रों को पहिने हुए हाथ ऊँचे किए हुए बह जिनदेव का ध्यान करने लगी। वह चारों ओर से फलों से लाद दी गयी और-भीलों तथा शबरों ने उसकी पूजा की। __ घत्ता-वे लोग अपने-अपने घर चले गये। कन्या अकेली वहाँ असुरक्षित रह गयी। वन में अर्हन्त भगवान का स्मरण करती हुई उसे बाघ ने खा लिया।
अपने किए हुए पुण्य से, वह स्वर्ग गयी। परन्तु निर्मल मणि के समान पवित्र हाथ की तीन अँगुलियाँ किसी प्रकार बच गयीं। भील-कुलों के पालकों ने उनकी पूजा की। समय बीतने पर उक्त अँगुलियाँ सड़
2. P दिण्णेदिलियहो। 3. P काउं। 4.दिणासबि। 5. B दसत्ति। 5. AP सुधम्म। 1. A सुंदरू | H.P रूट19. जाणवि। 10. Dणिग्गय सायक। 1.5 होयचि। 12.5 एमाषयि। 15. A घोइयधवलंबर । 14. B चउहं मि; S चहुं मि। 15. BPS "सवर | 16. B एकल्ली।
(5) 1. A "वस्मभलिण: । घोर अमलिण: P"यस धरुपमलिण: "घरममक्षिण | 2. B उद्वरियं । 9. PS कहिं पि। 4. B कुलबालेंPकुलपालें।