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________________ 800 महाकइपुप्फवंतविरयड महापुराणु [85.2.9 10 किणरिथणसिहरई णं दावइ विभमेहिं णं संसउ भावइ। फणिमणिकिरणहिं णं उज्जोयइ कमलच्छिहिं णं कण्ह पलोयड। भिसिणिपत्तथालेहि सुणिम्मल "उच्चाइय णं जलकणतंदुल। खलखलंति णं मंगलु घोस णं माहवहु पक्ख्नु सा पोसइ । णउ कासु वि सामण्णहु अण्णहु अवसें तूसइ जवण "सवण्णहु । बिहिं "भाइहिं थक्कउ तीरिणिजलु णं "धरणारिविहत्तउं कज्जलु । धत्ता–दरिसिउं ताइ तलु कि जाणहुं णाहहु रत्ती। पेक्खिवि महुमहणु मवणे णं "सरि वि विगुत्ती" ॥2॥ दुवई–णइ उत्तरिवि जाव थोवंतरु जति समीहियासए। दिवउ णंदु तेहिं सो पुच्छिउ णिक्कुडिलं समासए ॥ छ । महु कंतइ देवय ओलग्गिय धूय ण सुंदरु' पुत्तु जि मग्गिय। देविइ दिण्णी सुय किं किज्जइ तहि केरी लइ ताहि जि दिज्जइ । जइ सा तणुरुहु पडि महुं देसइ तो पणइणिहि आस पूरेसइ। णं तो गंधधूवचरुफल्लई चारुभक्खरूवाई रसिल्नई। वस्त्र है, गिरे हुए फूलों से मानो वह चितकबरा वस्त्र पहिन रही है। मानो वह किन्नरियों के स्तनों को दिखा रही है, मानो जलावर्तों से अपना संशय प्रकट कर रही है। नागराज की मणिकिरणों से मानो आलोक कर रही है। कमलों की आँखों से मानो कृष्ण को देख रही है। मानो जिसने कमलपत्रों की थालियों के द्वारा निर्मल जलकणरूपी तन्दुल उठा लिये हैं। खल-खल करती हुई मानो वह मंगल की घोषणा कर रही है, मानो माधव के पक्ष का समर्थन कर रही है कि यमना किसी दूसरे सामान्य मनुष्य से नहीं, अपित अपने सवर्ण (समान वर्णवाले) मनुष्य से अवश्य संतष्ट होगी। नदी का जल दो भागों में विभक्त होकर स्थित हो गया. मानो धरतीरूपी स्त्री का काजल दो भागों में विभक्त हो गया हो। घत्ता-उसने मानो अपना तलभाग दिखा दिया है। हम जानते हैं कि वह अपने स्वामी में अनुरक्त है। मधुमथन (कृष्ण) को देखकर मानो काम के द्वारा नदी तिरस्कृत की गयी हो। (3) नदी उतरकर (पार कर), अपनी चाही हुई इच्छा के अनुसार जैसे ही वे थोड़ी दूर पर जाते हैं, उन्हें नन्द दिखाई दिये। उन्होंने निष्कपट भाव से थोड़े में उनसे पूछा । (नन्द कहते हैं)-मेरी पत्नी ने देवी की सेवा की थी, कन्या सुन्दर नहीं होती इसलिए उसने पुत्र माँगा था। परन्तु देवी ने पुत्री दी, उसका क्या किया जाय ? उसकी कन्या उसी को दी जाय। यदि वह फिर से मुझे पुत्र देगी, तो मेरी प्रियतमा की आशा पूरी 10. A भटहरू। 11. D उज्जोषई। 12.8 पलोबइ। 19A उच्चायइ। 14. P मोसइ। 15. A समण्णहो। 16. RS भावहिं। 17. A धरणारिहि हित्तउं: P घरमारिशिहित्त। 18. A तणु। 19. A महणु णं मवणेण व सरी निव गुत्ती। 20. Pणं व सरि वि। 21. B विगुत्ती। (3) I. A सुंदर। 2. B2 °धूमः। 3. B"रूआई।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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