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________________ 85.2.8] महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु छत्तालकिड को किर णिग्गइ भासइ सीरि रूसि व सुहदंसणु जो जीव" सो णिग्गउ तुह सोक्खजणेरउ को णिसिसमइ दुवारहु लग्गइ" । जो तुह "णिविडणियलविद्धंसणु । "पोमवइकरमरिमेल्लावष्णु | उग्गसेण नृव" अच्छहि सेरउ । घम - एम्व भणंत गय ते हरिसें कहिं मि ण माझ्य । सरहु णीसरिवि जउणाणइ झत्ति पराय ||1|| (2) दुबई - ता कालिंदि तेहिं 'अवलोइय मंथरवारिगामिणी । णं सरिरुवु धरिवि थिय महियलि घणतमजोणि जामिणी ॥ छ ॥ अंजणगिरिवरिंदकंती विव । बहुतरंग 'जरहयदेहा इव । कंसरायजीवियमेरा इव । णारायणतणुपपंती वि महिमयणाहिरइयरेहा इव महिहरदतिदाणरेहा इव वसुहणिलीणमेहमाला इव णं सेवालवाल दक्खालइ गेरुतु तोउ रतंबरु "साम समुत्ताहल बाला' इव । फेणुपरियणु णं तहि घोला । णं परिहइ चुयकुसुमहिं कब्बुरु" । [ 79 15 5 कुलिश, अंकुश और वलय से अंकित पैरोंवाले मथुराराज ( उग्रसेन) ने मधुर स्वर में पूछा - "छत्र से शोभित वह कौन जा रहा है, कौन रात के समय दरवाजे से लग रहा है ?" चन्द्रमा के समान शुभदर्शन बलराम बोलते हैं- " जो तुम्हारी गाढ़ी श्रृंखलाओं को ध्वस्त करनेवाला है, जो जीवंजसा के पति का नाश करनेवाला, पद्मावती के हाथों की जंजीरों को तोड़नेवाला है और तुम्हारे लिए सुख उत्पन्न करनेवाला है, वह निकल रहा है। हे उग्रसेन ! तुम चुप रहो।" बत्ता - ऐसा कहते हुए वे चले गये। हर्ष के मारे कहीं भी फूले नहीं समाये । नगर से निकलकर शीघ्र ही यमुना नदी पर पहुँचे । (2) मन्थर-मन्थर जल से बहनेवाली कालिन्दी नदी (यमुना ) को उन्होंने इस प्रकार देखा, मानो सघन अन्धकार से उत्पन्न होनेवाली यामिनी ही नदी का रूप धारण कर धरणीतल पर स्थित हो। वह (यमुना ) नारायण (कृष्ण) के शरीर की प्रभापंक्ति के समान, अंजनगिरिरराज की कान्ति के समान, कस्तूरी के द्वारा रचित रेखा के समान, वृद्ध देह के समान अनेक तरंगोंवाली, पहाड़ी गजों की दानरेखा के समान, राजा कंस की जीवन-मर्यादा के समान, धरती में व्याप्त मेघमाला के समान, मोतियों सहित श्याम बाला के समान थी। मानो वह अपने शैवाल रूपी बाल दिखा रही है, मानो उस पर फेन का दुपट्टा डाल रही है। गेरु से मिला जल उसका रक्त 14. A 15 A लग्गउ 16. B णिचडशियल | 17. AP विद्दारणु। 18. ABPS करिमरि 19. AP णिव: B णिदु । ( 2 ) 113 पविलोम । 2 । सरिरु । 3. AP resud 4 bas 54. A जलहरदेश: P जलधरवेला AP read 5a as 4 b 6 A सोम । N. AP रत्ततोय रतंवर 9 AP कचुर B कच्छुरु । 7. AB
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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