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________________ 78 ] महाकइपुप्फयंतविरपज महापुराणु [85.1.1 पंचासीमो संधि केसड' कसणतणु बसुएवें हयणियबसहु। उच्चाइवि लइउ सिरि कालदंडु णं कंसहु ॥ ध्रुवकं ॥ दुबई–णं हरिवंसवंसणवजलहरु णं रिउणयणतिमिरओ'। ____ जोइउ दीवएण हरि मायइ णं जगकमलमिहिरओ ॥ छ । कण्हु मासि सत्तमि संजावउ मारणकखिरु कसु ण "आयउ । हउं जाणमि सो दइवें मोहिउ महिवइलक्खणलक्खपसाहिउ। . लइयउ 'वासुएउ वसुएवं धरि वारिवारणु बलएवें। णिसि संचलिय छत्ततमणियरें ण वियाणिय णिरु करें इयरें। अग्गइ दरिसियतिमिरविहंगिहिं वच्चइ बसहु फुरतहिं सिंगहिं। को वि पराइउ* अमरविसेसउ कालहि कालिहि मग्गपयासउ । देवयचोइइ" आवयकुंठइ लग्गइ माहवचरणंगुष्ठुइ। जमलकवाडइं गाढविइण्णई विहडियाई णं वइरिहि पुण्णई। कुलिसायसवलयंकियपाएं बोल्लिचं सुमहुरु'3 महुराराएं। 10 पचासीवीं सन्धि वसुदेव ने श्यामशरीर केशव को ऊँचा कर सिर पर इस प्रकार ले लिया, मानो अपने वंश का नाश करनेवाले कंस के लिए यमदण्ड हो। (1 ) मानो हरिवंशरूपी बांस के लिए नव जलधर हो, मानो शत्रु के लिए अन्धकार हो। माता ने दीपक के उजाले में हरि को देखा, मानो विश्व-कमल के लिए सूर्य हो। कृष्ण सातवे माह में उत्पन्न हो गये। लेकिन मारने की इच्छा रखनेवाला कंस नहीं आया। मैं जानता हूँ कि उसे दैव ने मोहित कर लिया। राजा के लाखों लक्षणों से प्रसाधित वासुदेव को वसुदेव ने ले लिया। बलराम ने ऊपर छत्र कर लिया। छत्र और तम के समूह के साथ वे रात्रि में चले। कोई दुष्ट इसे नहीं जान सका। आगे-आगे वृषभ अन्धकार के नाश को दिखाता हुआ और चमकते हुए सींगों के साथ चल रहा था। रात्रि के समय मार्ग प्रकाशन करनेवाला जैसे कोई देव विशेष आ गया हो, देवता से प्रेरित और आपत्तियों को नष्ट करनेवाले माधव के पैर का अँगूठा लगते ही मजबूती से लगे हुए दोनों किवाड़ इस प्रकार खुल गये, मानो शत्रु के पुण्य ही विघटित हो गये। (1) I. PS केसबु । 2. Bउच्चाहय । 3. AP हरिवंसकंदणव। 4. P"तमरओ। 5. 1 जोयउ । १. आइ51 7. वासुएयु। 8. 5 संचरिय। 9. AP पाबिर। 10. पण पयासिउ; HP मयापयासिट। 11. P चोइय। 11. A आययकार: B आवयकुंछए। 19. A समहरु।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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