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________________ 84.18.121 महाकइपुष्फयंतयिरयज महापुराणु | 77 कि एयउ सइतिवलिउ गया णं णं रिउजयलीहउ हयाउ। सिसुअवयवेहिं कि भरिड पेटु णं णं दुत्थियकुलधणविसर्दु। किं जाबउ णिद्ध' मयच्छिकाउ णं णं हउं मण्णमि भूमिभाउ। किं रोमराइ णीलत्तु पर्ता णं णं खलकित्ति सियत्तचत्त । सीयलु वि उण्हु कि जाउ देहु णं णं किर पुत्तपयाउ एहु। कि माय समिच्छइ नृवपहुत्तु' णं णं तत्तणुजायहु चरित्तु । कि मेइणिभक्खणि इच्छ करइ णं णं तें केसउ धरणि हरइ। किं दुक्कर "तहि सत्तमउ मासु णं णं अरिवरगलकालपासु"। कि उप्पण्णउ भद्दिउ विरोउ ण णं पडिभडकामिणिहिं सोउ। पता. दाणादाणा अणि जगदाणा जणणिइ भरहद्धेसरु। सपया कतिपहावें पुप्फदंतभाणिहिहरु ॥18॥ 10 इय महापुराणे तिसद्विमहापुरिसगुणालंकारे महाकइपुष्फयंतविरइए महाभवभरहाणुमण्णिए महाकब्बे “वासुएबजम्मणं णाम "चउरासीमो परिच्छेउ समत्तो ॥84।। इसके पेट की त्रिवलियाँ समाप्त हो गयीं हैं ? नहीं, नहीं, शत्रु की विजय रेखाएँ मिट गयी हैं। क्या शिशु के अवयवों से पेट उभर आया है ? नहीं, नहीं, दुःस्थितों के लिए कुलधन का पिण्ड है। क्या मृगनयनी का शरीर स्निग्ध हो गया है ? नहीं, नहीं, मैं मानता हूँ, यह भूमिभाग कान्तिमान हो गया है। क्या रोमराजि नीली हो गयी है ? नहीं, नहीं, दुष्ट की कीर्ति ने सफेदी छोड़ दी है। क्या शीतल देह उष्ण हो गयी है ? नहीं, नहीं, यह पुत्र का प्रताप है। क्या माता राजा के प्रभुत्व को चाहती है ? नहीं, नहीं, यह तो उससे उत्पन्न होनेवाले पुत्र का चरित्र है। क्या धरती (मिट्टी) खाने की इच्छा करती है ? नहीं, नहीं, उस केशव के द्वारा धरती का अपहरण किया जाता है। क्या उसका सातवाँ माह आ पहुँचा है ? नहीं, नहीं, शत्रुओं के लिए यह काल का पाश है। क्या यह निरोग भद्रिय (कृष्ण) उत्पन्न हुए हैं ? नहीं, नहीं, प्रतिभटों की स्त्रियों के लिए शोक उत्पन्न हुआ है। पत्ता-राक्षसों का संहार करनेवाले अर्धचक्रवर्ती भरतेश्वर नारायण को माँ ने जन्म दिया जो अपने प्रताप और कान्ति के प्रभाव से नक्षत्रों की शोभानिधि को धारण करता है। प्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारों से युक्त महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महामव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का वासुदेवजन्म नाम का चौरासीवों परिष्छेद समाप्त हुआ। 2.2 किं तामु उयतिव" in second hand. 3. S"धणु। 4. Sपिद्ध। 5. BP पत्तु16. BP सियत्तु चत्तु17. AB णिय": P णिय°18, APS तं तणुः। 9.A'अयउ। 10.5 केस।।1.A गहे। 12. AP °कालयासु। 19. AP ससहावें। 14. A कंसकहतप्पत्ती कसकण्हुप्पत्ती। 15. चउरासीतियो।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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