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महाकरपुष्पयंतविरयउ महापुराणु
[84.17.2
बालई सुरवेउव्वणकयाई महुराहिउ जडु मारइ मयाई। अप्फालइ सिलहि ससंकु झत्ति ण बियाणइ अप्पाणहु भवित्ति । अण्णहिं दिणि पंकयययणियाइ णिसि देविइ मउलियणयणियाइ। करिरत्तसित्तु रुंजंतु घोरु दिट्ठउ सिविणइ केसरिकिसोरु। महिहरसिहराई समारुहंतु अवलोइउ गोवइ ढेक्करंतु'। उययंतु भाणु सियभाणु अवरु सरु फुल्लकमलु परिभमियभमरु। णियरमणहु अक्खिउं ताइ दि? तेण वि णिच्चफ्फलु ताहि सिछु । हलि णिसुणि सुअणफलु' ससहरासि हरि होसइ तेरइ गभवासि। अइमुत्तमहारिसिवयणु ढुक्कु ता मेल्लिवि सग्गु महाइसुक्कु। णिण्णामणामु जो आसि कालि सो देउ आउ गयणंतरालि । थिउ जणणिउवरि संपण्णकुसलु सुहं जणइ णाई णवणलिणि भसलु। पत्ता-सुच्छायइ। 'बाहिरि. आयइ जाणमि पिणा नि कालिय । किं खलमुह अवर वि उररुह पुरलोएण णिहालिय ॥17॥
(18) कि 'गब्भभावि पंडुरिउं वयणु णं णं जसेण धवलियउं भुवणु।
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की आशा से प्रवंचित मूर्ख मथुराराज मारता है। शंकालु कंस शीघ्र उन्हें चट्टान पर पछाड़ता है। वह अपनी भवितव्यता नहीं जानता। एक दूसरे दिन कमलमुखी, अपनी आँखें बन्द किये हुए देवकी ने रात में स्वप्न में ऐसा एक सिंह का बच्चा देखा जो गजरक्त से रंजित और घोर गर्जना कर रहा था। पहाड़ के शिखर पर चढ़ता हुआ और आवाज करता हुआ वृषभ देखा । उगता हुआ सूर्य और चन्द्रमा देखा। खिले हुए कमलोवाला सरोवर देखा, जिस पर भ्रमर मँडरा रहे हैं। उसने जो देखा था वह अपने पति से कहा। उसने भी उसे उनका निश्चित फल बताया-हले चन्द्रवदने ! स्वप्न फल सुनो। तुम्हारे गर्भवास से हरि का जन्म होगा। अतिमुक्तक महामुनि के वचन निकट आ पहुंचे हैं। तब महाशुक्र स्वर्ग को छोड़कर, जो पहले विनमि नाम का देव था, वह आकाश के अन्तराल में आया और सम्पूर्ण कुशल माँ के उदर में स्थित होकर इस प्रकार सुख देता है, मानो नवकमलिनी में भ्रमर बैठा हो। ___घत्ता-पुत्र की बाहर आती हुई कान्ति से ऐसा मालूम होता था कि दोनों (कंस और जरासन्ध) काले हो गये हैं। नगर के लोगों ने दुष्टमुख उनको (कंस और जरासन्ध को) और उरोजों को काला देखा।
(18) क्या गर्भावस्था में उसका मुख सफेद हो गया है ? नहीं, नहीं, यश से विश्व सफेद हो गया है। क्या
3. B"सित्त। 4. 1 ढिक्करंतु। 5. B उवयतु। 6. A पुष्पकमलु। 7.A सुवणु एणसस: सिविणफलुः । सुइणफन्नु । 8. 5 णिपणामु गाम । 9. PAIN. संपुण्ण" | 10. P सुयायए। 11. B बाहिर। 12. S वेणि मि।
(18) 1.5 गमभाव।