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महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु पत्ता-मुणि जंपिउ कि पई विप्पिउं पहरणसूरि' पधोसइ। ___ घरि जं सइ डिंभु जणेसइ तं जि कंसु "पहणेसइ ।।15।।
मई तह पडिवण्णउं एह वयणु ता पडिजपइ णिम्महियमयणु। होहिंति ससहि जे 'सत्त पुत्त । ते ताहं मज्झि मलपडलचत्त। अण्णत्त लहेप्पिणु 'बुड्डिसोक्खु छह चरमदेह जाहिति मोक्खु। सत्तमु सुउ होसइ वासुएह 'जरसंधहु कंसह धूमकेउ । जं एम भणिवि जिणपयदुरेहु गउ झत्ति दियबरु मुक्कणेहु । तं दो वि ताइं संतोसियाई णं कमलई रवियरवियसियाई। कालें तें कयगडभछाय सिसुजमलई तिणि पसूय माय । इंदाणइ देवें गइगमेण
भद्दियपुरवरि सुहसंगमेण । धत्ता-थिरचित्तहि जिणवरभत्तहि' वररयणत्तयरिद्धिहि ॥ घणथणियहि 'पुत्तत्विणियहि दविणसमूहसमिद्धहि ॥6॥ 10
(17) 'वणिवरसुयाहि ते दिण्ण तेण वेहाविउ णियतीवियवसेण । धत्ता-वसुदेव कहते हैं-हे मुनि ! आपने यह अप्रिय बात कैसे कहीं कि घर में यह सती जो बच्चे पैदा करेगी, कंस उनको निश्चित मारेगा।
( 16 ) मैंने उसे वचन दे दिया है। तब कामदेव को नष्ट करनेवाले मुनिवर कहते हैं- "बहिन के जो सात पुत्र होंगे, उनमें से मलपटल से रहित छह पुत्र दूसरी जगह बड़े होकर सुख प्राप्त करेंगे और छहों चरमशरीरी मोक्ष जाएँगे। सातवाँ पुत्र वासुदेव होगा जो जरासन्ध और कंस के लिए धूमकेतु होगा।"
जब इस प्रकार कहकर जिनचरणों के भ्रमर तथा मुक्तस्नेह (राग-द्धेष रहित) वह दिगम्बर मुनि शीघ्र चले गये, तब वे दोनों खूब सन्तुष्ट हुए; मानो सूर्य की किरणों से विकसित कमल हों। समय बीतने पर गर्भ की कान्ति से युक्त माता ने तीन युगल पुत्र पैदा किये। इन्द्र की आज्ञा से सुख के संगम नैगमदेव ने भद्रिय नगरवर में___ घता-स्थिरचित्त जिनवर की भक्त, श्रेष्ठ रत्नत्रय से सम्पन्न, सघन स्तनोंवाली, पुत्र की कामना रखनेवाली और प्रचुर धनसमूह से सम्पन्न,
( 17 ) वणिक्यर की पुत्री को वे पुत्र दे दिये। और देव-विक्रिया से उत्पन्न मरे हुए बालकों को, अपने जीवन 15. P पई किं। 17. H पहणेसूरि। 18. A णिठणेसइ ।
(16) 1. AP पुत्त सत्त। 2. AP अण्णत्य। 9. A बुद्धिसोक्तु बुद्धिसोक्खुः वद्विसोक्खु । 1. A छच्चरमदेह। 5. RS जरसेंधही। 6. चे दि। 7. A कयअंगछाय। ४. 5 सुहिसंगमेण 19. A भत्तिहे। 10. PS रिद्धो। II K पुत्तधणियहि ।
(17) 1. P वणे। 2. । विसेण।