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84.14.10]
महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु
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ता चिंतइ कसु णिसंसियाइ लियई ण होते रिसिभासियाई। णिहुउ' वि पवण्णउ कंसु तेत्यु अच्छइ वसुएउ गरिंदु जेत्थु। घत्ता-सो भासइ गुज्झु पयासइ "सगुरुहि खयभयजरियउ।। हरिसिंदणु कयकडमद्दणु जइयहुं मई रणि धरियउ ।।13।।
( 14 ) तइयहुं 'महुं तूसिवि मणमणोज्जु वरु दिण्णउ अवसरु तासु अज्जु । जाएं कैण वि जगरुभएण हउ णिहणेव्वउ ससडिभएण। इय वायागुत्तिअगुत्तएण'
भासिउं रिसिणा अइमुत्तएण' । जइ बरु पडिवज्जहि सामिसाल' परबलदलवट्टणबाहुडाल। णाहीपएसविलुलतणालु
जं जं होसइ देवइहि बालु। तं तं हउं मारमि म करि रोसु जइ मण्णहि णियवायाविसेसु । ता सच्चवयणपालणपरेण तं पडिवण्णउं रोहिणिवरेण। गउ गुरु पणवेप्पिणु घरहु सीसु माणिणिइ पबोल्लिउ माणिणीसु । वरकंतहं सत्तसचाई जासु दुक्कालु ण पुत्तहं तुज्झु तासु। मइं जाणेव्वउ वेयणयसाहि दुक्खेण तणय होहिंति जाहि।
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तब कंस विचार करता है कि मुनि के द्वारा कहे गये वचन मनुष्यों द्वारा प्रशंसित होते हैं, वे झूठ नहीं होते। तब विनीत कंस वहाँ गया जहाँ वसुदेव राजा था। ___घत्ता-अपने मरण के ज्वर से पीड़ित वह बोलता है और अपना रहस्य गुरु को बताता है कि जब मैंने युद्ध में खून-खच्चर करनेवाले सिंहरथ को पकड़ा था,
उस समय तुमने प्रसन्न होकर मुझे सुन्दर वर दिया था। आज उसका अवसर है। जग का रोधन करनेवाली अपनी बहन से उत्पन्न किसी पुत्र द्वारा मैं मारा जाऊँगा। यह बात वचनसंयम की रक्षा नहीं करनेवाले अतिमुक्तक ने कही है। इसलिए शत्रु-सेना को चकनाचूर करनेवाली बाहुरूपी शाखाओंवाले हे स्वामी ! यदि आप वह वर देना स्वीकार करें कि देवकी के जो-जो लड़का पैदा होगा, जिसकी नाभि में नाल हिल-डुल रहा है, उसको मैं मारूँगा। आप क्रोध नहीं करना। तब सत्य वचन का पालन करनेवाले वसुदेव ने यह बात स्वीकार कर ली। शिष्य गुरु को प्रणाम करके अपने घर गया। माननीय स्त्रियों के स्वामी वसुदेव से देवकी ने कहा कि तुम्हारे पास सात सौ सुन्दर स्त्रियाँ हैं; इसलिए तुम्हें पुत्रों का अकाल नहीं रहेगा, लेकिन जिसे कष्ट से सन्तान होती है ऐसी मैं, उस वेदना को जानती हूँ।
K. Sणीससिवाई। 9.४ णिपुर जि णिहुयउं जि। 10. APS राउ। 11. A सुगुरुहे; B ससुरहि। 12. A°भयजजरिध भयजरिउ । 15. S हरिदंसणु। 14.S" वंदण।
(14) 1. P पहुं। 2. P महो मणोज्जु। . A "अगुत्तिएण। 4. A "मुत्तिएण। 5. P सामिसालु। 6.5 "दलबद्दणः। 7. पवेसे। H. AP दोस्। 4. B i s in ssecond hand.