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________________ 84.12.6] महाकइपुप्फयंतविरवर महापुराण [ 71 इयो भणिय बे विमसिकतात .. णिहिगई णियदिरि "गोउति। असिपंजरि पिचरई पावएण चिरभवसंचियमलभावएण। थिउ अप्पुणु पिउलच्छीविलासि लेहारउ पेसिउ गुरुहि पासि । लेहें अक्खिउ जिह उग्गसेणु रणि धरिवि णिबद्धउ णं करेणु । पई विणु रज्जेण वि काई मज्झु जइ वयणु ण पेच्छमि कहि मि तुज्झु । तो" महु गरभवजीविठं णिरत्यु आवेहि देव उड्डियउ4 हत्थु । धत्ता-तें वयणे रंजियसयणे संतोसिउ सामावइ । 15 गउ महुरहि वियलियविहरहि सीसु तासु मणि 'भावइ ||1|| (12) लोएं गाइज्जइ धरिवि वेणु जो पित्तिउ णामें देवसेणु। तहु तणिय धूय' तिहुवणि पसिद्ध सामा वामा गुणगामणिद्ध । रिसहि मि उक्कीइयकामबाण देवइ णामें देवक्समाण। सा णियसस गुरुदाहिण भणेवि महुराणाहें दिण्णी थुणेवि। सुहं भुंजमाण' णिसिवासरालु अच्छति जाव "परिगलइ कालु। ता अण्णहिं दिणि जिणवयणवाइ अइमुत्तउ णामें कंसभाइ। मेरी दुष्ट और क्रूरचरित्र माँ हो। यह कहकर चन्द्रमा की कान्ति के समान उन दोनों को अपने प्रासाद के भीतर गोपुर में बन्दी बना लिया। इस प्रकार पूर्वभाव के सचित पाप की भावना करनेवाले उस पापी ने अपने माता-पिता को बेड़ियों में डाल दिया और स्वयं पिता के लक्ष्मी-बिलास में स्थित हो गया। उसने एक पत्र गुरुजी के पास भेजा। उस पत्र में यह कहा गया था कि किस प्रकार उग्रसेन को रण में पकड़कर हाथी के समान बाँध दिया गया है। आपके बिना मेरे राज्य करने से क्या ? यदि मैं आपका मुख नहीं देखता हूँ, तो मेरा मानव-जीवन व्यर्थ है। हे देव ! आइए यह मेरा हाथ उठा हुआ है। ___घत्ता-स्वजनों को रंजित करनेवाले इन शब्दों से (गुरु) सन्तुष्ट हुए और वे संकटों को नष्ट करनेवाली मथुरा नगरी के लिए गये। उन्हें अपना शिष्य कंस बहुत अच्छा लगा। ( 12 ) लोगों के द्वारा वेणु पर यह गीत गाया गया कि जो कंस का देवसेन नाम का चाचा है, उसकी गुणसमूह से युक्त, सुन्दर और त्रिभुवन में प्रसिद्ध बेटी है जो ऋषियों के लिए भी काम के तीरों से उत्कण्ठित करनेवाली है। देवता के समान जिसका नाम देवकी है, उस अपनी बहन को गुरु-दक्षिणा कहकर मथुरा के स्वामी कंस ने स्तुतिपूर्वक वसुदेव को दे दी। वह भी दिन-रात सुख का भोग करते हुए रहने लगे। इस बीच समय बीतता गया तब एक दिन जिन-वचनों को माननेवाला कंस का भाई अतिमुक्तक पिता के बन्धन से विरक्त, B.S इस मणिवि। ५. मंदिर। 10. APS अनु।।. धरवि। 12.APS कह घ। 13 ता. 14. ओडियन; P ओड्डियउ।।5। तासु सीसु । (12) 1.Bधीय . 2. B तिवण" | S. 1 उपकोय कामवाण: PN उक्कोइबकुसुमबाण। 4. BP धुंजमाणु। 5. A अच्छंतु 1. AB परिगलिय": पडिगलइ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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