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________________ 70 ] महाकइपुष्फयंतविरपर महापुराणु [84.10.9 10 अवलोइयकरधणुगुणकिणाह। ता उग्गसेणु वाहियगयींदु धाइउ "सहुं गिरिणा णं मइंदु । बोल्लाविउ रूसिवि तणउ तेण किं जाएं पई णियकुलबहेण। गब्भत्थें खद्धउं मज्झु मासु तुहुं महुं हूयउ णं "दुमि हुयासु। यत्ता-विधतें समरि कुपुत्तें उग्गसेणु पच्चारिउ।। .. . जो ऐल्ला पासा पल्लई सो मह वप्पु वि वइरिउ ||10॥ बोल्लिज्जड़ एवहिं काई ताय गज्जंतु महंतु गिरिदतुंगु पहरणई णिवारिय' पहरणेहिं णहयलि हरिसाविउ अमरराउ पडिगयकुंभत्यलि पाउ देवि असिधाउ देंतु करि धरिउ ताउ आवीलिवि भुयवलएण रुद्ध तेत्थु जि पोमावइ माय धरिय 'परिहच्छ पउर दे देहि घाय। ता चोइउ मायंगहु मयंगु। पहरंतहिं सुयजणणेहिं तेहिं। उड्डिवि कसें णियगयवराउ। पुरिमासणिल्लभडसीसु लुणिवि। पंचाणणेण णं मृगु वराउ। पुणु दीहणायपासेण' बद्ध । किं तुहुं मि जणणि खल कूरचरिय। के भंग से ग्रह डर गये, वसा समूहों से लिपटे शरीर दिखाई देने लगे। सैनिकों के द्वारा अपने राजा का ऋण चुकाया जाने लगा। अपने कर और धनुष की डोरी के चिह्न देखे जाने लगे। तब उग्रसेन ने अपना हाथी आगे बढ़ाया, मानो पहाड़ के साथ सिंह दौड़ा हो। उसने क्रुद्ध होकर अपने पुत्र से कहा--"अपने ही कुल का वध करनेवाले तुम्हारे पैदा होने से क्या ? गर्भ में रहते हुए तुमने मेरा मांस खाया, तुम मेरे लिए वैसे ही पैदा हुए, जैसे पेड़ के लिए हुताशन। घत्ता-युद्ध में वेधन करते हुए कपूत कंस ने उग्रसेन को ललकारा कि जिसने मुझे पीड़ित किया और पानी में फेंका, वह बाप होकर भी मेरा दुश्मन है। हे पिता । इस समय बोलने से क्या, शीघ्र तुम प्रचुर आघात दो। इस प्रकार उसने गरजते हुए पहाड़ की तरह ऊंचे महान् मातंग नाम के हाथी को प्रेरित किया। इस प्रकार एक-दूसरे पर प्रहार करते हुए बाप-बेटे ने हथियारों से प्रतिकार किया। आकाश में इन्द्र पुलकित हो उठे। कंस ने अपने गजवर से उठकर दूसरे हाथी के गण्डस्थल पर पाँव देकर आगे बैठे योद्धा के सिर को काटकर तलवार का आघात देकर पिता को हाथ से पकड़ लिया। सिंह ने बेचारे हरिण को पकड़ लिया है। अपने बाहुबल से पीड़ित उसे आबद्ध कर लिया और तब लम्बे पाश में बाँध लिया 1 यहीं पर उसने माता पद्मावती को भी पकड़ लिया कि तुम भी 10. AP बाहवि गयंदु। IH. APणं सहुं गिरिणा मइंदु। 12. AP दुपु हुवासु। (11). परिहत्युः 5 परिहत्य। 2. ६ गिरिदु। 3. B चोयउ। 1. APS णिवारिवि। 5. AP सीतु लचि। 6. BP मिगुः 5 मिग। 7. वासेण ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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