SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 84.10.8] महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु वेदिय महुराउरि दुद्धरेहिं अट्टालय पाडिय" दलिउ कोट्टु अक्खिउ "रेहिं गंभीरभाव जो पई कालिदिहि धित्तु आसि हत्थिहिं रहेहि हरिकिंकरेहिं । "साडिउ पुररक्खणणरमरटूट्टु । आयउ तुज्झुप्परि पुत्तु देव । एवहिं अवलोयहि नियभुयासि । धत्ता - आयणिवि रिउ तणु मण्णिवि दाणु देंतु णं दिग्गउ | संणज्झिवि हियइ विरुज्झिवि उग्गसेणु पहु णिग्गउ ॥9॥ ( 10 ) संचोइयणाणावाहणाहं करमुक्कसुलहलसव्वलाहं 'घोलंत अंतमालाचलाह पडिदंतिदंतलुयमयगलाहं FarenaenjaTesis विडंतहं मुच्छाविंभलाह" * अइदूसहवणवेयणसहाहं दरिसावियदेहवसावहाह जायउ रणु दोहिं मि साहणाहं । ददधरियाउंचियकुंतलाह' । 'पवहंतपहरसंभवजलाई । असिवरदारियकुंभत्थलाहं । दोखंडियकमकडियलगलाहं । णारायणियरछाइयणहाहं । भडभिउडिभंगभेसियगहाहं । णीसारियणियणरवइरिणाहं । 1 69 10 5 के जीवन को हरण करता हुआ तथा ईर्ष्या धारण करता हुआ कुछ दिनों में वह वहाँ पहुँचा। उसने दुद्धर हाथियों, रथों, अश्वों और किंकरों द्वारा मथुरा नगरी को घेर लिया । अट्टालिका गिरा दी गयीं, परकोटा बरबाद कर दिया गया। नगरी की रक्षा करनेवालों का मान चकनाचूर कर दिया। तब लोगों ने जाकर कहा- हे गम्भीरभाव देव ( उग्रसेन ) ! तुम्हारे ऊपर तुम्हारा बेटा चढ़ आया है जो तुम्हारे द्वारा यमुना में फेंक दिया गया था । इस समय वह हाथ में तलवार लिये है । उसे देखो। घत्ता - यह सुनकर दुश्मनों को तिनके के बराबर समझकर जैसे मद-जल झरता हुआ हाथी हो, तैयार होकर और मन में क्रुद्ध होकर राजा उग्रसेन निकला । ( 10 ) दोनों सेनाओं में युद्ध होने लगा - ऐसी सेनाओं में कि जिनमें नाना वाहन चला दिये गये हैं। शूल-हल और सब्बल हाथ से छोड़े गये, मजबूती से पकड़े हुए कुन्तल खींचे जाने लगे। अंतड़ियों के चंचल जाल फैलने लगे और प्रहारों से उत्पन्न रक्त के जल ( झरने) बहने लगे, मदमाते हाथी प्रतिवादी हाथियों के दाँतों से छिन्न होने लगे, श्रेष्ठ तलवारों से हाथियों के गण्डस्थल फाड़ डाले गये । रक्तरंजित मोती नष्ट किये जाने लगे। पैरों, कटितलों और गालों के दो टुकड़े हो गये। मूर्च्छा से विह्वल होकर सैनिक गिरने लगे । तीरों के समूह से आकाश छा गया। अत्यन्त असह्य घावों की वेदना को सैनिक सहन करने लगे । योद्धाओं की भौंहों I 10. H याड़िय। 11. A साडिय पुरक्क्षणु णरमर: BAls. गिद्धाईिड पुररक्खणमरट्टु 5 साडिए पुररक्खणमडमरट्टु । 12. A चरेहिं । (10) 1. APS दोहं मि। 2. 5 read from here down to line to the text in a confused manner. 9. S लोलंत: K लोलंत in second hand. 4. D पहवंत । 5. B Als. पाडिय। 6. A सरंत 7. S मिला। 8. S इय दूसह । . AP 'वसायया ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy