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________________ 68 1 मलकपुष्यंत विरपर महापुराणु राण भणिय त तण तणउ ता सा भासइ भयभावखद्ध" ओहछ " एयहु तणिय माय कलियार सइसवि सिसु हणंतु मेरउ ण होइ मुक्कउ गुणेहिं घत्ता - तहिं अच्छिउं पत्तु नियच्छिउं सुहदिहि र जत्ति ( 9 ) पवरुग्णमावईहि ' इय वइयरु " जाणिवि तुटू पाहु ससुरेण भणिउं वरवीरवित्ति' जमाएं वुत्तु णिरुत्तवाय महिमंडलसहिय महाभडासु सहुं सेण्णें उग्गयधरणिपंसु अविणीयजीयजीविउ हरंतु 9. ABPS] दिन । इहु कंसवीरु जगि "जणियपणउ । कालिदिहि मई मंजूस लद्ध । ह ं तुम्हहं सुद्धिनिमित्तु आय । गणिउ घराउ विप्पिउ चवंतु। जोइय मंजूस वियक्खणेहिं । जयसिरिमाणिणिमाणिउ । होए लाणि ॥१॥ (9) 1. S "उमावईहि । 2 जाग3 सुउ कंसु एहु सुमहासईहि । जीवंजस दिण्णी किउ विवाहु । जा रुच्च सा मग्गहि "धरिति । महुं महुर देहि रायाहिराय । सा' दिण्ण तेण राएण तासु । णिय सहुयासणु चलिउ कंसु । दिवसेहि पत्तु मच्छरु वहंतु । [ 84.8.9 10 15 पहुँचती है। दिशामुखों को सिद्ध करनेवाले राजा को उसने देखा । राजा ने कहा कि जग को प्रणत करनेवाला यह वीर कंस क्या तुम्हारा बेटा है? तब वह भयभाव से अभिभूत कहती है कि यमुना नदी में मुझे एक मंजूषा मिली थी। इसकी माता यह है। हम तुम्हारे पास सही वृत्तान्त कहने आये हैं। यह झगड़ालू बचपन में ही बच्चों को पीटता था। मैंने अप्रिय कहकर उसे घर से निकाल दिया। गुणों से रहित यह मेरा बेटा नहीं है। तब पण्डितों ने उस मंजूषा को देखा । 5 पत्ता - उसमें रखा हुआ पत्र देखा और लोगों ने जाना कि विजयलक्ष्मी और मानिनियों द्वारा मान्य यह शुभदृष्टि नरपतिवृष्णि का नाती है। (9) महान् उग्रसेन की अत्यन्त महासती पद्मावती का यह कंस नाम का पुत्र है । यह वृत्तान्त जानकर राजा सन्तुष्ट हुआ और अपनी कन्या जीवंजसा को दान में देकर शादी कर दी। ससुर ने कहा- श्रेष्ठ वीरवृत्ति से युक्त जो धरती तुम्हें लगे, वह माँगो दामाद ने कहा- आप सत्य बोलनेवाले हैं। हे राजाधिराज ! मुझे मथुरा नगरी दे दो। राजा ने भी उस महाभट्ट को धरणी- मण्डल सहित वह नगरी उसे दे दी। तब जिस धरती से धूल उठ रही है, ऐसा कंस अपने वंश के लिए हुताशन के समान सेना के साथ चला। अविनीत लोगों . 3 Als. कहीं; Als considers तर to be a mistake in s for कहु 10. B जगजणिय 11. P भवताय । 12, A एह अच्छर ।" हत्थड 13. B छ । बहुबीरवित्तिः B वरु वीरवन्ति । 5. A रुध्यइ ता। 6. B धरति । 7. AP ता B. B'जीव' ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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