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________________ 84.8.8] महाकइपुष्पयतविरयउ महापुराणु [ 67 10 तहि तणुरुहु हउं अच्चतचंडु परडिंभमुंडि घल्लंतु दंडु। मुक्कउ णियप्राणद्दपिणयाइ मायइ टुपुत्तणिव्विणियाइ। "सूरीपुरि सेविउ चावसूरि अमसिउ' मई वि धणुवेउ भूरि। सहुं गुरुणा जाइवि धरिउ बी अवलोयहि पासकियसरीरु। तं सुणिवि णरि, सीसु धुणिउँ एयहु कुलु एउं ण होइ भणिउं। घत्ता-रणतत्तिउ" णिच्छउ खत्तिउ एहु ण परु भाविज्जइ"। कुलु सव्वहु णरहु अउबहु आयारेण मुणिज्जइ ॥7॥ इय पहुणा मणिवि किसोयरीहि पेसिउ दूयउ मंजोवरीहि। तें जाइवि' महआरिणि पवृत्त पई कोक्कइ पहु बहुबंधुजुत्त । कि भासियाइ बहुयइ' कहाइ अच्छइ तेरउ सुउ तहिं जि माइ। सुयणामें कपिय जणणि केव पवणंदोलिय वणवेल्लि जेव। सा चिंतइ उ संवरइ चित्तु किउं पुत्ते काई मि दुच्चरित्तु । हक्कारउ आयउ तेण मज्झु बज्झउ मारिज्जउ सो ज्जि वज्झु। इय 'चविवि चलिय भयथरहरंति मंजूस लेवि पहि संचरति ।। दियहेहिं पराइय रायवास दिइड परवइ साहियदिसासु'। मंजोदरी नाम की एक कलाल स्त्री है। मैं उसका अत्यन्त प्रचण्ड पुत्र हूँ। मैं दूसरों के बच्चों के सिर पर डण्डे मारता रहता था। अपने खोटे पुत्र से विरक्त तथा अपने प्राणों को पीड़ित करनेवाली उसे मैंने छोड़ दिया। मैंने शौरीपुर में आकर धनुषाचार्य (वसुदेव) की सेवा की और वहाँ धनुर्विद्या का खूब अभ्यास किया। गुरु के साथ जाकर मैंने इसे पकड़ा। बन्धन से चिह्नित शरीर इसे आप देखिए।" यह सुनकर राजा ने अपना माथा पीटा कि इसके द्वारा कहा गया यह कुल इसका नहीं है। ___घत्ता-रण की चिन्ता से युक्त यह निश्चय ही क्षत्रिय है, यह बात दूसरे में नहीं आ सकती। अज्ञात सभी व्यक्तियों का कुल उनके आचरण से जानना चाहिए। ___ यह कहकर राजा ने कृशोदरी (दूती) को मंजोदरी के पास भेजा। उसने जाकर उस कलारिन (कलवारिन) से कहा कि तुम्हें अनेक बन्धुओं से युक्त राजा ने बुलाया है। बहुत कथा कहने से क्या लाभ ? माँ, तुम्हारा पुत्र भी वहाँ है। पुत्र के नाम से माता उसी प्रकार काँप उठी, जिस प्रकार हवा से आन्दोलित होकर वन की लता काँप जाती है। वह सोचती है और वह अपने चित्त को रोक नहीं पाती है-पुत्र ने जरूर खोटा काम किया है। इसी कारण से मुझे यह बुलावा आया है। उसे मारा जाय, बाँधा जाय, वह बन्धन योग्य है। यह कहकर भय से थर-थर काँपती हुई वह मंजूषा लेकर रास्ते में चलती है। कुछ दिनों में वह राजभवन 4. AP पाण| 5. PS मपाए। 1S सउरी 17.A अभासिउ। 3. BSAls. धीरु। 9.5 धुणी। 10. A रणतिउ। II. B पर। 12. AP चिंतिजइ। (8) 1. S जोएपि; Kजोइवि in sccon hand. 2. A पञ्त्तु; पवुत्तः पउत्त। . AR "जुनु। 4. AP बहुलइ। 5. AP परिवि। 6. A संवरति। 7. AKP सासुः buleloss in k साधितदिशामुखः।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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