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महाकइपुष्फयतविरवर महापुराणु ता 'सुहडसमुमड़ चप्परेवि रणि णियगुरुअंतरि पइसरेवि। पवरपोवंगयीं संपरेवि
चक्लाउहपरिवंचणु करेवि। उल्ललिवि धरित सीहरहु केम कसें केसरिणा हस्थि जेम। आवीलिवि बद्धल बंधणेण ।। जंडजोउ" व "जीयासाधणेण। णिउ दाविउ अद्धमहीसरासु अहिमाणु भुवणि णिव्यूद कासु। तं पेरिखवि राएं वुत्तु एव वसुएव तुझु सम णेय देव। घत्ता-साहिज्जइ केण धरिजई एहु पयंडु महाबलु ।
पहरुदें जिह णहु चंदें तिह पई मंडिउं णियकुलु° ॥6॥
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को पावइ तेरी वीर छाव लइ लइ जीवंजस जसणिहाण ता रोहिणेयजणणेण वुत्तु हउँ पर मेहमि परपुरिसयारु रायाहिराय जयलच्छिगेह पहु पुच्छइ कुलु वज्जरइ कंसु कोसंबीपुरि कल्लालणारि
कालिंदिसेणसइदेहजाय। मेरी सुय संतावियजुवाण। परमेसर परजपणु अजुत्तु। एबहु कसें किउ बंधणारू। दिज्जउ कुमारि एयहु जि एह । णउ होइ महारउ सुद्ध वंसु। मंजोवरि' णामें हिययहारि।
से छेदता है। तव सुभटों की भीड़ को चाँपकर, युद्ध में अपने गुरु के बीच प्रवेश कर, तथा उत्तम अंगोपांगों को ढंककर, चंचल हथियारों की प्रवंचना कर, उछलकर कंस ने सिंहरथ को उसी प्रकार धर पकड़ा, जैसे सिंह हाथी को पकड़ लेता है। उसे पीड़ित कर बन्धन में बाँध लिया जाता है। ले जाकर उसने उसे अर्ध-चक्रवर्ती जरासन्ध को दिखाया। इस संसार में किसी का भी अहंकार नहीं रहता। यह देखकर राजा जरासन्ध ने इस प्रकार कहा कि हे वसुदेव ! तुम्हारे समान देवता भी नहीं है।
घत्ता-किसके द्वारा यह प्रपंच महाबली लड़ा और पकड़ा जा सकता था। जिस प्रकार चन्द्रमा अपने प्रभापूंज से आकाश को आलोकित करता है, उसी प्रकार तुमने अपने कुल को शोभित किया है।
हे वीर ! तुम्हारी कान्ति कौन पा सकता है ? तुम कालिन्दीसेन रानी के शरीर से उत्पन्न युवकों को सतानेवाली मेरी इस जीर्वजसा कन्या को जो यश की निधान है, स्वीकार करो। तब बलभद्र के पिता वसुदेव ने कहा, "हे देव ! अन्यथा कहना गलत है। दूसरे के पौरुष को मैं स्वीकार नहीं करूंगा। इसको पकड़नेवाला कंस है, इसलिए हे राजाधिराज और विजयलक्ष्मी के आश्रय आप वह कन्या उसे दें। तब राजा कंस से पूछता है और वह उत्तर देता है कि मेरा कुल पवित्र नहीं है। कौसाम्बी नगरी में, हृदय को सुन्दर लगनेवाली
1.A सुहड समभड्। 5. AB परतणु। 6. 1 जन्। 7. AP ऋम्मणिचणेण। HAPS पेधिनि। 9.Aणिययकस।
(7)1. P"सः। 2. P RI. ली ।