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________________ 84.6.41 महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु | 65 वसुएवकंस भूभंगभीस लग्गा "परबलि उज्झायसीस । वरसुहहहं सीसई जिल्लुणति थिरु थाहि थाहि हणु हणु भगति। वंचंति विलंति खलति धति पइसंति एंति पहरंति यति। अंतई' लंबंतई ललललंति रत्तई पवहंतई झलझलति। महि णिविडमाण हय हिलिहिलंति सरसल्लिय गयवर गुलुगुलति। दवोट्ट रुट्ठ मारिवि मरंति जीविउं मुयंत पर हुंकरंति। पललुद्धई गिद्धई णहि मिलंति भूयई येयालई किलिकिलति। पहरणइं पडतइं धगधगंति विच्छिण्णई कवयइ जिगिजिगति। यत्ता-पहरंतहु सामाकंतहु सीहरहेण णिवेइय। पर टामण नामनिवारण कंचणमुखविराइय ॥5॥ 10 एयारह बारह पंचवीस ___पण्णास सट्टि बावीस तीस। तेण वि तहु तहिं मग्गण विमुक्क रह वाहिय खोणियखुत्तचक्क। ते वीर बे वि आसण्ण ढुक्क णं खयसागर मज्जायमुक्क।' परिभडघंघलु भुयबलु कलंति अवरोप्परु किल' कोतहिं हुलंति। युक्त उस रथ को नष्ट कर दिया, शत्रु और जम्पान यान को चकनाचूर कर दिया। इस प्रकार भौंहों के भंग से भयंकर गुरु और शिष्य, वसुदेव और कंस शत्रुसेना से भिड़ गये। ये श्रेष्ठ योद्धाओं के सिर काट डालते हैं। ठहरो ! ठहरो ! मारो-मारो कहते हैं, चलते हैं, मुड़ते हैं, स्खलित होते हैं, नष्ट करते हैं, घुसते हैं, आते-जाते प्रहार करते हैं और ठहर जाते हैं, लम्बी-लम्बी पताकाएँ हिलती हैं, बहते हुए रथ झलमलाते हैं। धरती पर पड़े हुए घोड़े हिनहिनाते हैं और तीरों से बिंधे हाथी चिंधाड़ रहे हैं। कटे हुए होठोंवाले क्रुद्ध योद्धा मारकर मरते हैं और प्राण छोड़ते हुए हुँकार भरते हैं। पांस के लोभी गिद्ध आकाश में इकट्ठे हो रहे हैं। भूत और वैताल किलकारियों मार रहे हैं। धक-धक करते हुए हथियार गिरते हैं। कवच विछिन्न होकर जगमगा रहे हैं। घत्ता--प्रहार करते हुए श्यामा के पति वसुदेव पर मर्म का छेदन करनेवाले और स्वर्णपंख से शोभित भयंकर तीर सिंहरथ ने छोड़े। 6 ] ग्यारह, बारह, पच्चीस, पचास, साठ, बाईस और तीस तीर और उसने (वसुदेव ने) भी उतने ही तीर छोड़े। जिसके चके धरती को खोद रहे हैं, ऐसे रथ को आगे बढ़ाया। वे दोनों वीर परस्पर निकट पहुंचे मानो मर्यादा से मुक्त प्रलय समुद्र हों। शत्रुसमूह अपना बाहुबल इकट्ठा करता है और एक-दूसरे को भालों 5. 5 वरबले। 6. BP Als. चलाते। 7. B गत्तई लुंचतई। 8. APS णिवद्रमाण19. AP कयययई। (6) 1. BS खोणीखुत्त । 2. AP मज्जायचुक्क। 3. ABPS किर।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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