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________________ 81.5.13] [5 महाकपुप्फयतविरया महापुराणु घत्ता-तेण “पयंपियर्ड गउ विमलणाहु णिच्चाणाहु । जिह सो तिह अवरु तुह जणणु वि सासयठाणह ||4|| जं सुणिउ' ताउ संपत्तु मोक्नु तं जायउं अबराइयहु दुक्खु । र पलाद ण परिहद परिहणाई णउ लावइ अंगि विलेवणाई। णउ कुसुमई विसमियसडयणाई णउ आहरणइं णियकुलहणाई। घवघवघवंतपयणेउराई णालोयई पहु अंतेउराई। णउ भुंजइ उवणिउ दिव्यु भोउ ण सुहाइ तासु एक्कु वि विणीउ। चिंतइ णियमणि हयदुष्णयाई जइ तायविमलवाहणपयाई। 'पेच्छेसमि' मुंजमि पुणु धरित्ति णं तो "यसणंगहं महुं णिवित्ति। इय जाम ण लेइ गरिदु गासु गय दियह पुण्णु" अटोववासु । तहि अवसरि इंदहु चिंत जाय मुहकुहरहु णिग्गय महुर वाय। जज्जाहि धणय बहुगुणणिहाउ मा मरउ अपुण्णइ कालि राउ। सिरिअरुहदासरिसिणा सणाहु ___ दक्खालहि जिणवरु विमल" ताहु। पत्ता-सयमहपेसणिण ता समवसरणु किउ जक्खें। दाविउ परमजिणु दिज्जमाणु" सहसक्खें ॥5॥ 10 घत्ता-उसने कहा कि मुनि विमलनाथ निर्वाण चले गये हैं; जिस प्रकार वह, उसी प्रकार तुम्हारे पिता ने भी शाश्वत स्थान (मोक्ष) प्राप्त किया है। जब उसने सुना कि पिता मोक्ष को प्राप्त हुए, तो इससे अपराजित को बहुत दुःख हुआ। वह न नहाता, न वस्त्र पहिनता, और न शरीर में अंगलेपन करता, और श्रान्त हैं भ्रमर जिनमें ऐसे कुसुमों को भी धारण नहीं करता। न आभरण, न निज कुलधन, और न रुनझुन करते हुए नुपूरोंवाले अन्तःपुरों को वह राजा देखता । वह अपने मन में दुर्नयों का नाश करनेवाले पिता के श्रीचरणों का ध्यान करता (और कहता)-"जब मैं उनको देख लूँगा तभी धरती का भोग करूँगा, नहीं तो भोजन और काम से मेरी निवृत्ति।" इस प्रकार जब राजा को भोजन ग्रहण नहीं करते हुए आठ दिन बीत गये और उसके आठ उपवास हो गये, तो इन्द्र के मन में चिन्ता हुई और उसके मुख-कुहर से मधुर वाणी निकली-“हे धनद (कुबेर), तुम जाओ, अनेक गुणों का समूह वह राजा अपूर्ण समय में मृत्यु को प्राप्त न हो। श्री अरहदास ऋषि के साथ जिनवर विमलवाहन को तुम उसके लिए दिखा दो।" घत्ता-तब इन्द्र के आदेश से यक्ष ने समवसरण की रचना की, और इन्द्र के द्वारा वन्दनीय परमजिन को दिखाया। 12. भषिञ्। (5) 1. A णिसुन । 2. AS संपत्त। 3. A यियसियसड़यणाई। 4. A "कुलहराई। 5. Bणालीपइ। 6. A उ भुंजइ। 7. B पिछसपि; P पिक्खेसमि । 8. ABPS add तो after पेठोसमि and omit पुणु। 9. AP असणंगह। 10.A पतुः पाणु। 1. ABPS विमलवाहु। 12. A वंदिव्यपाणु।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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