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________________ महाकइपुम्फयंतविरवर महापुराणु [81.3.12 पत्ता–सिविणइ दिटु हरि करि चंदु सूरु सिरि गोवइ। ताइ कहिउँ पियहो" सो णिम्मलु णियमणि भावइ ॥3॥ होसई सुउ हरिणा रिउअजेउ ससिणा सूहल णिरु' सोम्मभाउ सिरिदसणि सुंदरु सिरिणिकेउ थिउ गब्भि ताहि 'मिगलोयणाहि उप्पण्णउ णवजोव्वणि बला कमणीयही कंतहं जणिउ राउ णहदसदिसिवहणिग्गयपयाऊ णिसुणेवि धम्मु 1 उववणिवासि कुलसंपय देवि सर्णदणासु पुत्तें गहियाई अणुव्ययाई आवेप्पिणु केसरिपुरि पइट्ठ करिणा गरुयउ गुरुसोक्खहेउ। सूरेण महाजसु तिब्बतेउ। कइवयदिणेहिं साणंदु देउ। णवमासहि कसणाणणथणाहि । देवह मि मणोहरु णाई सग्गु। अरिसिरचूडामणिदिण्णपाउ । जायउ दियहहिं रायाहिराउ। तारण विमलवाहणहु पासि। जिणदिक्ख लेवि कउ मोहणासु। पयडीकयसुरणरसंपयाई। कालेण पराइउ एक्कु इटु । 10 घत्ता-स्वप्न में उसने देखा-सिंह, हाथी, चन्द्र, सूर्य, लक्ष्मी और वृषभ । उसने यह बात अपने प्रिय से कही। वह भी अपने मन में विचार करने लगा। उसने कहा- "सिंह देखने से शत्रु के लिए अजेय पुत्र होगा, हाथी देखने से महान् और सुख का कारण होगा, चन्द्रमा देखने से अत्यन्त सुभग और सौम्य स्वभाव का होगा। सूर्य देखने से महायशस्वी और तीव्र तेजवाला होगा, लक्ष्मी देखने से सुन्दर और लक्ष्मी का घर होगा।" कुछ दिनों के बाद कोई देव आनन्दपूर्वक उस मृगनयनी देवी के गर्भ में स्थित हो गया। श्याम मुख और स्तनोंवाली उस देवी से नौवें माह में उत्पन्न वह शीघ्र नवयौवन को प्राप्त हो गया। उसकी रचना देवों से भी सुन्दर थी। उसने सुन्दर स्त्रियों में राग-चेतना उत्पन्न कर दी। शत्रुओं के सिरों के चूड़ामणियों पर पैर रखनेवाला और आकाश तथा दसों दिशाओं में अपने प्रताप का प्रसार करनेवाला वह कुछ ही दिनों में राजाधिराज हो गया। अपने उपवन के निवास-घर में मुनि विमलबाहन के पास धर्म सुनकर, पिता ने अपने पुत्र को कुलसम्पत्ति देकर और जिनदीक्षा ग्रहण कर मोहनाश किया। पुत्र ने भी देयों और मनुष्यों की सम्पत्ति को उत्पन्न करनेवाले अणुव्रत ग्रहण कर लिये। बह आकर सिंहपुर रहने लगा। कुछ समय बाद एक इष्ट (मित्र) उसके पास आया। 14. B प्रियह। 11.किन्नु नृभजनी राजा)। (4) 1. P मिरिसम्म । 2. 18 सोमभा। ४. B दिचतेउ; Als. Proprises to read दियकाउ without Ms. authority. 4. A मृग-। 5. 19] =पासहि: A कालाणगथणारे; As. reads in $ करणाणणप्पणाके, but the Ms. gives कसणाणपणाहे where this wrongly cupied for 2 । 7. P कमगीयहि। 8. गियराउ । 9. A तर दस": णहदशदिशिष। 10. B उययणि। ।। B आएप्पिणु।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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