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________________ 81.3.11] महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु 13 हउं करमि कच्चु सो करउ जिंद" फलु जाणिहिंति दोहं मि मुणिंद। 10 यत्ता-सरसु सकोमल? खलगलकंदलि पर देप्पिणु । हिंडेसइ विमल महु कित्ति तिजगु लंघेप्पिणु ॥2॥ (3) चिंतिज्जड़ काई खलावराहु बीहंतु वि किं ससि मुयइ राहु। मुडु पसियउ महु जिणवीरणाहु लइ करमि कब्बु सुहजणणु साहु। भो सुयण भव्ववरपुंडरीय भो णिसुणि भरह गुरुयणविणीय। पंदणवणपहुधारारसिल्लि 'महमहियविविहपप्फुल्लफुल्लि' । गुमुगुमुगुमंतहिंडियदुरेहि इह जंबूदीवि पच्छिमविदेहि। सीयाणइउत्तरतडणिवेसि जणसंकुलि गंधिलणामदेसि। गणागलग्गहिराधनलहम्मि' पायारगोउरारावरम्मि। सीहरि णराहिउ अरुहदासु वच्छत्थलि णिवसइ लच्छि जासु । वाईसरि मुहि जसु "दसदिसासु "पाणि? देबि जिणदत्त तासु। दोहिं मि जणेहिं णरणायबंदु एक्कहिं दिणि अहिसिंचिउ जिणिंदु। 10 णिसि सुंदरि कुलिसु व मज्झि खाम जिणयत्त पसुत्ती पुत्तकाम। ग्रहण करने की प्रकृतिवाले दुर्जन-समूह का निवारण नहीं करता। भले ही कुत्ते भौंकें, मैं काव्य की रचना करता हूँ। निन्दक भले ही निन्दा करे। मुनीन्द्र ही दोनों का फल जानेंगे। पत्ता-मेरी विमल कीर्ति अपने सरस और कोमल चरण दुर्जन के गले और सिर पर रखकर, त्रिलोक का अतिक्रमण करती हुई, विचरण करती हुई घूमेगी। दुष्टों के अपराधों की चिन्ता करने से क्या ? क्या काँपते हुए चन्द्रमा को राहु छोड़ देता है ? मुझ पर जिनवीरनाथ शीघ्र प्रसन्न हों। मैं सुखजनक (पुण्यजनक) काव्य की रचना करता हूँ। हे भव्यरूपी उत्तम कमल, गुरुजन-विनीत हे सज्जन भरत ! सुनो, जहाँ मधुधारा से रसमय और महकते हुए फूल खिले हुए हैं तथा गुनगुनाते हुए भ्रमर भ्रमण कर रहे हैं, ऐसे जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेह में सीतोदा नदी के उत्तर तट पर स्थित, जनसंकुल सुगन्धिल नाम का देश है। उसमें सिंहपुर नामक नगर है; जिसमें अपने अग्रभाग से आकाश को छूनेवाले हिमधवल प्रासाद हैं, जो गोपुरों, परकोटों और उद्यानों से सुन्दर हैं। उसमें अरहदास नामक राजा निवास करता है। उसके हृदय में लक्ष्मी और मुख में सरस्वती तथा दसों दिशाओं में यश निवास करता है। जिनदत्ता उसकी प्राणप्रिया पली है। एक दिन उन दोनों ने मनुष्यों और नागों के द्वारा वन्दनीय जिनेन्द्रदेव का अभिषेक किया। मध्यभाग में वज्र की तरह दुबली-पतली (कृशोदरी) जिनदत्ता, पुत्र की कामना लेकर रात में सोयी। 19. AP गंथु। 14. R जिंदु। 15. APS टो िभि। 16. B मुणिंदु। 17. APS सुकोमलउं। (3) 1. BP वणि। 2. सैल्लि। 3. B महिए। 4. B'पफुल्ल । 5. B इय। 6. A सीबोयहि: P सोओयति । 7. P"यलि । ४.5 णराहियु। 9.5 अरहदात् । 10.11 दश। 11. 0 प्राणिट्ट। 12. B जिणवत्त। 13 B मज्झखाम।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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