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________________ 84.3.19] महाकइपुष्फयतविरयड महापुराणु [ 63 10 अवलोइउ ताएं कूरदिट्टि णिहणेक्ककामु उग्गिण्णमुट्ठि। कंसियमंजूसहि किउ अथाहि घल्लिउ कालिंदीजलपवाहि। मंजोययरीइ' सोमालियाइ पालिउ कल्लालयबालियाइ। सियमंजूसहि जेण दिछ तेण जि सो कंसु भणेवि घुछ। कोसंबिपुरिहि' पत्तउ पमाणु णं कलिकयंतु णं जाउहाणु। णिच्चु जि परउिंभई ताडमाणु धाडिउ ताएं जायउ जुवाणु। गउ सउरीपुरु वसुएवसीसु" जायउ णाणापहरणविहीसु। असिणा 'जरसिधे जिणिवि वसुह । णिहावय वारे सुहि णिहिय ससुह। एक्कहिं दिणि अत्थाणंतरालि थिउ पभणइ सो गायणरवालि। परमंडलिय' जित्त 1"धरणि वि तिखंड साहिय विचित्त। पर अज्जि वि णउ सिज्झइ सदप्पु णउ पणवइ णउ महु देइ कप्पु । पोयणपुरवइ सीहरहु राउ र णि दुज्जउ रिउजलवाहबाउ । घत्ता-जो जुज्झइ तहु बलु बुज्झइ धरिवि णिबंधिवि आणइ। रइकुच्छर' णं अमरच्छर मेरी सुय सो माणइ ॥3॥ पति के देह का मांस खाया। उससे अपने कुल का ही नाश करनेवाला पुत्र हुआ। पिता ने देखा कि वह क्रूरदृष्टि, हिंसा की इच्छा रखनेवाला और खुली हुई मुट्ठियोंवाला है। उसे काँसे की मंजूषा में रखा और यमुना के अथाह जल में डाल दिया। कलाल बालिका सुकुमारी मंजोदरी ने उसे पाला, चूंकि वह काँसे की मंजूषा में देखा गया था, इसलिए घोषणापूर्वक उसे कंस कहकर पुकारा गया। कौसाम्बी नगरी में उसके होने का प्रमाण मालूम हो गया। मानो वह काल-काल का यम हो या राक्षस । प्रतिदिन दूसरों के बच्चों को वह मारता-पीटता। पिता के द्वारा निष्कासित किया गया वह अब युवा हो गया। शौरीपुर में जाकर वह वसुदेव का शिष्य हो गया और नाना हथियारों से यह भयंकर हो उठा। जरासन्ध ने तलवार से धरती को जीतकर, शत्रुओं को नष्ट कर, अपने मित्रों को सुख में स्थापित कर दिया। एक दिन संगीत से गूंजते दरबार में बैठा हुआ वह बोला-"मैंने अनेक प्रकार के शत्रु जीते और तीन खण्डवाली यह विचित्र धरती भी जीत ली, लेकिन मैं आज भी एक गीले राजा को नहीं जीत सका। वह न तो प्रणाम करता है और न मुझे कर देता है। पोदनपुर का स्वामी राजा सिंहस्थ रण में अजेय है और शत्रुरूपी मेघ के लिए पवन के समान धत्ता-जो उससे लड़ता है, उसके बल को समझता है और पकड़कर बाँधकर लाता है, वह कामकुतूहल उत्पन्न करनेवाले देहवाली अप्सरा के समान मेरी लड़की को माने। I. B मंदावरीए । ५. 9. मंदिलिय , . कल्लालिए। 3. AP लेण वि। 4. AP कोसंविषयो। 5.5 घाडियउ । G. AP बसुदेव। 7. घराणी तिखंद। 1. AP पय पणवइ। 12.5.'वायु। 19. APS 'कोछ । जरसें जरसंधै। 8. A समुह ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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