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________________ 84.2.8] । 61 15 महाकइंपुष्फयंतांवरयड महापुराणु उववासु करइ सो मासु मासु देहति ण दीसइ रुहिरु मासु। गिरिवरि चरंतु अच्चंतणिठु रिस उग्गसेणराएण दिछु। तें भत्तिइ बोल्लिउ णिरु णिरीहु लब्भइ कहिं एहउ सवणसीहु। पत्ता-ओसारिउ णयरु णिवारिउ मा परु करउ पलोयणु। सविवेयहु साहुहु एयह हउं जि करेसमि भोयणु ।।।। (2) जोयंतहु भिक्खुहि पिंडमग्गु' 'पहिलारइ मासि हुयासु लग्गु। मयगिल्लगडु हिंडियदुरेह बीयइ कुंजरु णं कालमेहु। भिंदइ दंतहिं 'नृवभिच्चदेहु तइयइ आइउ णरणाहलेहु। पहु भंतउ कज्जपरंपराइ हियउल्लउं ग गयीउं णिहयराइ। तहु तिषिण मास गय एम जाम केण वि पुरसेण पउत्तु ताम। परु वारइ सई णाहारु देइ एहउ वि केम भण्णइ विवेइ। भुंजाविउ भुक्खइ दुक्खु तिक्खु हा हा राएं मारियउ भिक्खु । तं णिसणिवि' रोसहयासणेण पज्जलिउ तवसि "दम्मिउ मणेण। 5 'चरित्र का आचरण करता हुआ, धरती पर भ्रमण करता हुआ वह मथुरा नगरी में आया। वह माह-माह के उपवास करता, उसके शरीर में मांस और रक्त दिखाई नहीं देता था। अत्यन्त निष्ठावान राजा उग्रसेन ने उन मुनि को पर्वत पर विचरण करते हुए देखा। उसने भक्तिभाव से कहा कि ऐसे अत्यन्त निरीह श्रमण-श्रेष्ठ को कहाँ पाया जा सकता है ? धत्ता-उस राजा ने आहार देने के लिए द्वाराप्रेक्षण करने के लिए नगरवासियों को मना कर दिया और यह भी कहा कि विवेकशील इन मुनि को मैं ही भोजन कराऊँगा। मुनि के आहार के मार्ग को देखते हुए पहले महीने में राजमन्दिर में आग लग गयी। दूसरे महीने में, जिस पर भौरे गूंज रहे हैं ऐसा मद से गीले कपोल वाला हाथी, जो मानो कालमेघ के समान था, राजा के अनुचर के शरीर को दाँतों से फाड़ डालता है। तीसरे महीने में एक राजा का पत्र आ गया। इस प्रकार कार्य की परम्परा के कारण (कार्यभार के कारण) वह भूल गया और मुनि में राग होते हुए भी (मुनि में श्रद्धा होते हुए भी) उसका मन उनकी ओर नहीं गया। इस प्रकार जब उनके तीन माह बीत गये, तो किसी एक आदमी ने कहा कि ऐसे राजा को विवेकवाला किस प्रकार कहा जा सकता है जो न तो स्वयं आहार देता है और फिर दूसरे को भी मना कर देता है। इस प्रकार उसने भूख के तीव्र दुःख का अनुभव इस मुनि को कराया है तथा (कहा कि) अफसोस है कि उसने इन्हें मार डाला। यह सुनकर क्रोध की ज्वाला 11. A देहेण ण दीसह। 12. AP तयतु । (2) 1. B पिंडु। 2. 5 पहिलाए। 3. BPAIN. 'गंउ । 1. HP णिव । 5. PS आया। 5. S पमुत्तु। 7. Sणिसुगति। 8. B दूमिय: P दूमिज ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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