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महाकइपुष्फयतविश्यउ महापुराणु मंगु मम सिजो लो ससिमुहु महसुक्कामरु रोहिणितणुरुहु । घत्ता-भरहखेत्तनृवपुज्जु णवमु सीरि उप्पण्णउ।
पुप्फदंततेयाउ तेण तेउ पडिवण्णउँ ॥23॥
इय महापुराणे तिसट्टिमहापुरिसगुणालंकारे महाकइपुप्फपतविरइए महाभश्वभरहाणुमण्णिए महाकचे खेयरभूगोयरकुमारीलंभो" समुद्दयिजय
वसएवसंगमो णाम तेयासीतिमो"परिच्छेउ समत्तो॥8
नाम का जो महाऋषि था, वह महाशुक्र स्वर्ग का चन्द्रमुख देव होकर रोहिणी का पुत्र हुआ। ___घत्ता-फिर भरतक्षेत्र के राजाओं में पूज्य नौवें वलभद्र के रूप में उत्पन्न हुआ। उसने नक्षत्रों के तेज से भी अधिक तेज स्वीकार किया।
इस प्रकार प्रेसठ महापुरुषों के गुणों और अलंकारों से सहित महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का
तेरासीयाँ परिच्छेद समाप्त हुआ।
12. A
खेत्ति णिव' । 18. ६ खयर 111. A "वसुदेवसंगमो बलदेवउप्पत्ती। 15. P तेपासीमो; S तीयासीतिमी।